दिल्ली स्थित एनसीयूआई मुख्यालय में पुलिसकर्मियों का दिखाई पड़ना सामान्य बात नहीं है लेकिन 4 जुलाई यानी ‘अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस’ मनाए जाने के अगले दिन संस्था परिसर में पुलिसकर्मियों को देखा गया। मामला एनसीयूआई भवन में स्थित अशोक डबास के 25 साल पुराने कार्यालय से जुड़ा है।
एनसीयूआई प्रबंधन ने पिछले कई वर्षों से शीर्ष संस्था के मुख्यालय की छठी मंजिल पर शासी निकाय के पूर्व सदस्य अशोक डबास के कब्जे वाले कार्यालय से उनको बाहर निकालने का फैसला किया है।
इस घटनाक्रम के बारे में जानकारी देते हुए, डबास ने भारतीय सहकारिता संवाददाता से फोन पर कहा, “एनसीयूआई अधिकारियों ने मेरे कर्मचारी के साथ गलत व्यवहार किया और इसकी सूचना मिलते ही आनन फानन में मैं एनसीयूआई मुख्यालय पहुंचा तो मुझे परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया गया, जिसके चलते मैंने हौज खास थाने में एनसीयूआई प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक अतिचार की शिकायत दर्ज कराई।”
इसे आपराधिक अतिचार और चोरी का मामला बताते हुए, डबास ने व्यंग्यात्मक रूप से कहा, “मुझे ‘अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस’ के अवसर पर एक बड़ा उपहार मिला है; इस शानदार अवसर पर एनसीयूआई के नए क्षत्रपों ने मेरे कार्यालय में जमकर तोड़फोड़ की।”
इस मामले में भारतीय सहकारिता ने एनसीयूआई के मुख्य कार्यकारी सुधीर महाजन के रुख को जानने की कोशिश तो उन्होंने लिखा, “यह शिकायत है न कि प्राथमिकी, संपदा प्रभाग/पीआर विभाग से मामले की स्थिति रिपोर्ट प्राप्त करें।”
बाद में, एनसीयूआई ने स्थिति रिपोर्ट मेल की, जिसमें अशोक डबास से किराया वसूली के लिए उनकी सहकारी समिति “भारतीय नवीनतम तकनीक एवं निर्माण बहु-राज्य सहकारी समिति लिमिटेड (बीएनटीएनएसएस), को भेजे गए नोटिसों के बारे में उल्लेख किया।
स्थिति रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 20.06.2021 तक बीएनटीएनएसएस पर बिजली और सामान्य सेवा शुल्क के रूप में 32,64,500/- रुपये की राशि बकाया है। डबास इस सहकारी समिति का संचालन एनसीयूआई भवन से कर रहे थे।
एनसीयूआई रिपोर्ट में आगे लिखा है, “चूंकि एनसीयूआई की गवर्निंग काउंसिल द्वारा एनसीसीई छात्रावास के पुनर्निर्माण का निर्णय लिया गया है। अतः इसकी एक शर्त के रूप में एनसीयूआई द्वारा डीडीए को बताना होगा कि एनसीयूआई परिसर में कोई अनधिकृत निर्माण/अतिक्रमण मौजूद नहीं है। बीएनटीएनएसएस द्वारा अतिक्रमित उपरोक्त स्थान को खाली कराना जरूरी है ताकि इस नई परियोजना के लिए हम डीडीए से मंजूरी प्राप्त कर सकें”, स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि “बीएनटीएनएसएस परिसर से बरामद वस्तुओं की सूची में शराब की छ: बोतलें भी शामिल हैं, जिसका सीधा अर्थ है कि इस ‘समिति’ का उपयोग आधिकारिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा रहा है।”
दूसरी ओर, डबास ने अपनी पुलिस शिकायत में कहा, “पिछले 25 वर्षों से हम सहकारी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए उक्त सोसायटी का संचालन कर रहे हैं”।
डबास ने आगे लिखा, “दिनांक 4.07.2021 को हमारा ऑफिस बॉय श्री संजय कुमार सुबह लगभग 8.45 बजे ऑफिस से बाहर किसी काम के लिए गया था और जब वह दोपहर 12:30 बजे लौटा तो उसे परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई और उसे एक पॉलीथिन बैग थमा दिया गया, जिसमे कुछ सामान था और उसे वहां से भाग जाने को कहा गया।”
“संजय ने मुझे सूचित किया कि उनकी सोने की चेन, सोने की अंगूठी और पच्चीस हजार रुपये, नकद उसने कार्यालय में रखे थे। कार्यालय में कई फर्नीचर आइटम, इलेक्ट्रॉनिक आइटम (टीवी), एयर कंडीशनर, पंखा, अलमीरा, सभी महत्वपूर्ण फाइलें, चेक बुक और अन्य महत्वपूर्ण रिकॉर्ड और हमारी सोसाइटी और अन्य सदस्य समितियों के कागजात थे”।
“घटना के बारे में पता चलने पर मैं एनसीयूआई भवन पहुंचा लेकिन मुझे अंदर जाने से रोक दिया गया। मैंने लगभग 03:30 बजे पुलिस को 100 नंबर पर कॉल किया लेकिन पुलिस को भी परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गयी”, डबास ने अपनी शिकायत में लिखा है।
डबास ने दिनांक 21 जुलाई 1994 की एक “किराया-समझौता” की एक प्रति उपलब्ध करायी जिसमें अन्य बातों के अलावा उल्लेख किया गया कि “दोनों पक्ष सहकारी शिक्षा और प्रशिक्षण सहित सहकारी विकास आंदोलन में शामिल हैं और इन उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करने का इरादा रखते हैं।”
समझौते में कहा गया है कि प्रथम पक्ष (एनसीयूआई) ने 3, सिरी इंस्टीट्यूशनल क्षेत्र, खेल गांव मार्ग, नई दिल्ली-110049 में अपनी इमारत का निर्माण किया है और दूसरा पक्ष प्रथम पक्ष के भवन के शीर्ष तल पर लगभग 250 वर्ग फुट के आवास के लिए इच्छुक है।
उक्त आवास के एवज में दूसरा पक्ष प्रथम पक्ष के कोष/भवन निधि में 55000/- रुपये के अग्रिम अंशदान और दिनांक 21.7.1994 से 20.6.95 तक की अवधि के लिए 250 वर्गफीट स्थान के लिए 3.20 रुपये प्रति वर्ग फीट प्रति माह की दर से किराये का भुगतान करेगा। “भारतीय नवीनतम तकनीक एवं निर्माण बहु-राज्य सहकारी संघ लिमिटेड” प्रत्येक वर्ष कार्पस/बिल्डिंग फंड के लिए उक्त योगदान में 5% की वृद्धि करेगा।
डबास द्वारा भेजा गया दीर्घकालीन किराया-समझौता और मामले पर एनसीयूआई की स्थिति रिपोर्ट अपनी जगह पर हैं, लेकिन तथ्य यह है कि इस मुद्दे पर कभी भी इतना बवाल नहीं हुआ कि पुलिस को शीर्ष निकाय में बुलाने की नौबत आई हो। अतीत में सहकारी नेता हमेशा एनसीयूआई की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए बातचीत के माध्यम से समाधान खोजने में सफल रहे हैं।
एनसीयूआई की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार यदि डबास ने अवैध रूप से कार्यालय पर कब्जा किया हुआ था, तो सवाल यह उठता है कि एनसीयूआई ने पिछले 25 वर्षों से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। शासी निकाय के एक पूर्व सदस्य अशोक डबास के मामले का बातचीत के माध्यम से हल नहीं निकालने और अचानक बल प्रयोग कर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देना सहकारी आंदोलन के लिए अच्छा नहीं है।
वरिष्ठ सहकारी नेताओं और वर्तमान जीसी सदस्यों को प्रतिष्ठित निकाय की पवित्रता बनाए रखने के लिए विचार करना चाहिए।