दिग्गज सहकारी नेताओं ने सहकारी समितियों के प्रभावी प्रबंधन और कामकाज से संबंधित 97वें संविधान संशोधन अधिनियम के कुछ प्रावधानों को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर नाखुशी जताई है।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए एनसीयूआई के अध्यक्ष दिलीप संघानी ने कहा कि हमें भरोसा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी निश्चित रूप से कोई रास्ता खोजेंगे। पाठकों को याद होगा कि न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के एम जोसफ और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने सहकारी समितियों से संबंधित संविधान के भाग IXबी को रद्द कर दिया है।
संघानी ने कहा, “मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब 2011 में यह संशोधन संसद द्वारा पारित किया गया था और उन्होंने मेरे साथ मिलकर गुजरात सहकारी अधिनियमों को 97वां सीएए के अनुरूप तर्कसंगत बनाने में कोई समय नहीं गंवाया। लेकिन अब मोदी जी प्रधानमंत्री हैं और अगर उन्होंने सीएम पद पर रहते हुए जल्दी की थी तो निश्चित रूप से वह अब पीएम के रूप में कोई रास्ता जरूर खोजेंगे।”
एनसीयूआई के अध्यक्ष ने आगे कहा कि सहकारिता मंत्री के रूप में अमित शाह की नियुक्ति प्रधानमंत्री मोदी की दूरगामी सोच के कारण हुई है जो ग्रामीण और शहरी सहकारी क्षेत्रों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
संघानी ने महसूस किया कि 97वें सीएए में सुझाए गए सहकारिता संशोधन के बल पर शाह बहुत कुछ हासिल करने में सक्षम होंगे। उन्होंने कहा कि राज्यों में सहकारी कानूनों की एकरूपता से पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित होगी और इससे केंद्रीय सहकारिता मंत्री को सहायता मिलेगी।
अब सरकार के सामने केवल दो ही रास्ते बचे हैं। या तो समीक्षा याचिका दायर करें; नहीं तो नए सिरे से इस कानून को पारित कराएं। मुझे यकीन है कि सरकार जल्द से जल्द कोई फैसला लेगी, संघानी ने रेखांकित किया।
पाठकों को याद होगा कि एनसीयूआई के पूर्व अध्यक्ष चंद्रपाल सिंह यादव ने राज्य सभा सांसद रहते हुए संसद में 97वें सीएए के लिए लड़ाई लड़ी थी। इस मुद्दे पर उन्होंने कहा, “यह स्पष्ट है कि संशोधन में कुछ कमियाँ थीं लेकिन हम सरकार से उन्हें सुधारने और अधिनियम को संसद में फिर से पेश करने का अनुरोध करेंगे।”
सहकार भारती के संस्थापक सदस्यों में से एक सतीश मराठे ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सहकारी संस्था का गठन करना भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार है। इसी तरह, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का अनुच्छेद 43बी बरकरार है। लेकिन मराठे ने 97वें सीएए को पारित करने में यूपीए द्वारा दिखाई गई अनुचित जल्दबाजी को दोषी ठहराया जिसके कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई।
उन्होंने कहा, “अन्ना हजारे आंदोलन के मद्देनजर, यूपीए ने आधा अधूरा 97वां संविधान संशोधन पेश किया था और आधी रात को इसे मंजूरी मिल गई थी।”
संसद में पारित संवैधानिक (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011 को 12.01.2012 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई थी, जिसे 13.01.2012 को भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया और 15.02.2012 को लागू हुआ। बाद में, गुजरात उच्च न्यायालय ने 97वें संविधान संशोधन की वैधता पर सवाल उठाया।