भारतीय रिज़र्व बैंक ने सहकारी राबोबैंक यू.ए. (बैंक) पर बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (अधिनियम) की धारा 11 (2) (बी) (ii) के प्रावधानों, और दिनांक 23 सितंबर 2000 के ‘बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 17(1) और 11(2)(b)(ii) – रिज़र्व फंड में अंतरण’ पर रिज़र्व बैंक के निदेशों के उल्लंघन के लिए 1 करोड़ (एक करोड़ रुपये मात्र) का मौद्रिक दंड लगाया है।
यह दंड बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 46 (4) (i) के साथ पठित धारा 47 ए (1) (सी) के प्रावधानों के तहत आरबीआई को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए लगाया गया है।
यह कार्रवाई विनियामक अनुपालन में कमियों पर आधारित है और इसका उद्देश्य बैंक द्वारा अपने ग्राहकों के साथ किए गए किसी भी लेनदेन या समझौते की वैधता पर सवाल करना नहीं है।
रिज़र्व बैंक द्वारा 31 मार्च 2020 को बैंक की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में पर्यवेक्षी मूल्यांकन (आईएसई) के लिए सांविधिक निरीक्षण आयोजित किया गया था, और उसी से संबंधित जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट की जांच से अन्य बातों के साथ-साथ यह पता कि अधिनियम के उक्त प्रावधानों और आरबीआई द्वारा जारी निदेशों का उल्लंघन किया गया है।
उक्त के आधार पर बैंक को एक नोटिस जारी किया गया जिसमें उनसे यह पूछा गया कि वे कारण बताएं कि जैसा कि उसमें उल्लेख किया गया है, अधिनियम के प्रावधानों और आरबीआई द्वारा जारी निदेशों का अनुपालन नहीं करने के लिए उन पर दंड क्यों न लगाया जाए।
बैंक के उत्तर, व्यक्तिगत सुनवाई के दौरान किए गए मौखिक प्रस्तुतीकरण तथा बैंक द्वारा किए गए अतिरिक्त प्रस्तुतीकरण पर विचार करने के बाद रिज़र्व बैंक इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि अधिनियम के उक्त प्रावधानों और आरबीआई द्वारा जारी निदेशों के उल्लंघन के उपर्युक्त आरोप सिद्ध हुए हैं और मौद्रिक दंड लगाया जाना आवश्यक है।