शनिवार को एनसीयूआई सभागार में यूनाइटेड थ्रिफ्ट क्रेडिट सोसाइटीज फेडरेशन ऑफ दिल्ली द्वारा शीर्ष निकाय के सहयोग से आयोजित एक सहकारी संगोष्ठी को संबोधित करते हुए, नव नियुक्त केंद्रीय सहकारिता राज्य मंत्री बीएल वर्मा ने कहा कि हम प्राथमिक स्तर की सहकारी समितियों को मजबूत करेंगे और उन्हें बदलते परिवेश में सर्वोत्तम तकनीक से लैस करेंगे।
“हम पैक्स के अधिकारियों, कर्मचारियों, अध्यक्ष, निदेशकों के साथ-साथ समितियों से जुड़े सदस्यों को प्रशिक्षण देंगे ताकि वे अपनी-अपनी समितियों को पेशेवर ढंग से संचालित कर सकें। प्रशिक्षण द्वारा हम सहकारिता के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “सहकार से समृद्धि” के सपने को साकार कर सकते हैं। इसके अलावा, मंत्री ने सहकारी समितियों को उनके विकास के लिए हर संभव सहायता देने का भी आश्वासन दिया।
संगोष्ठी का विषय “सहकारिता के स्वर्णिम अध्याय एवं वर्तमान परिपेक्ष्य में सहकारिता का भविष्य” था। इस अवसर पर एनसीयूआई के अध्यक्ष दिलीपभाई संघानी, आरबीआई सेंट्रल बोर्ड के सदस्य सतीश मराठे, एसोचैम की पूर्व निदेशक टीना शर्मा, यूनाइटेड थ्रिफ्ट-क्रेडिट सोसाइटीज फेडरेशन के अध्यक्ष सुनील गुप्ता, दिल्ली सहकारी समितियों के प्रतिनिधि और अन्य लोग उपस्थित थे।
अपने भाषण में मंत्री ने उन लोगों को ललकारा है जिनका इरादा सहकारी क्षेत्र को अपनी गलत रणनीति से नष्ट करना है। “हम उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे और उन्हें किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सहकारी आंदोलन राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और रोजगार पैदा करने की शक्ति रखता है। हम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहकारी समितियों को मजबूत करने के लिए काम करेंगे”, वर्मा ने कहा।
इस मौके पर एनसीयूआई के अध्यक्ष दिलीप संघानी ने अपने भाषण में कहा कि सहकारी समितियां विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही हैं और सहकारिता आंदोलन को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए सराहनीय कार्य कर रही हैं। पूर्व में सहकारी बैंकों से ऋण लेने के लिए किसानों को भारी ब्याज दर चुकानी पड़ती थी, लेकिन अब ये बैंक शून्य ब्याज दर पर 3 लाख रुपये तक का ऋण दे रहे हैं। यह सहकारिता की शक्ति है, उन्होंने गर्व से कहा।
आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड के निदेशक सतीश मराठे ने महसूस किया कि सहकारी समितियों को उन क्षेत्रों में अपनी पहुंच बनानी चाहिए जहां उन्होंने अभी कदम नहीं रखा। “हम म्यूचुअल फंड के साथ-साथ बीमा क्षेत्र में को-ऑप्स की कमी को देखते हैं। बीमा क्षेत्र में सहकारिता के प्रवेश करने से उनके सदस्यों को बड़े पैमाने पर मदद मिल सकती है और उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी कंपनियों की तुलना में बेहतर सेवा मिल सकती है। उनका प्रीमियम भी कम होगा”, उन्होंने जोर देकर कहा।
मराठे ने कई देशों के उदाहरण भी दिए जहाँ इन क्षेत्रों में सहकारी समितियां काम कर रही हैं। “इसके अलावा, हमें देश भर में सहकारी अस्पतालों का एक मजबूत नेटवर्क बनाने की जरूरत है जो स्वास्थ्य देखभाल मूल्य स्थिरीकरण में मदद कर सके”, उन्होंने रेखांकित किया।
मुख्य वक्ता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गौरीशंकर कुमार ने 97वाँ संवैधानिक संशोधन पर बात की थी और इसकी पृष्ठभूमि से प्रतिभागियों को अवगत करवाया। एसोचैम की पूर्व निदेशक टीना शर्मा ने सहकारी समितियों में अधिक से अधिक महिलाओं को जोड़ने पर जोर दिया, जो उन्हें सशक्त बनाने के साथ-साथ आत्मनिर्भर भी बना सकती हैं।