एनसीयूआई की गवर्निंग काउंसिल (जीसी) द्वारा मंगलवार को एनसीसीटी के सचिव के खिलाफ पारित प्रस्ताव का मामला तूल पकड़ता जा रहा है।
इस मुद्दे पर कई लोगों का कहना है कि जीसी के फैसले को मंत्रालय पलट सकता है क्योंकि यह सर्वसम्मति से पारित नहीं किया गया है। वहीं कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इस मामले में केंद्रीय रजिस्ट्रार की कोई भूमिका नहीं है।
सहकार भारती के एक सक्रिय सदस्य और सिक्किम के सहकारी नेता मंगल जीत राय ने प्रस्ताव के खिलाफ अपनी असहमति जताई है और उन्होंने इस संबंध में एनसीयूआई के अध्यक्ष और सीई दोनों को पत्र लिखा है। ‘भारतीयसहकारिता’ के पास राय की असहमति से जुड़ा पत्र और इस मुद्दे पर सेंट्रल रजिस्ट्रार के सर्कुलर दोनों की प्रति है।
राय ने अपने पत्र में लिखा, “श्री मिश्र के खिलाफ प्रस्तावित कार्रवाई में कोई तथ्य नहीं है। हम सभी जानते हैं कि एनसीसीटी के सचिव के पद पर उनका स्थायी समावेश तत्कालीन प्रशासनिक मंत्रालय यानी कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किया गया था जो कि एनसीयूआई का प्रशासनिक मंत्रालय भी है। श्री मिश्र की ओर से कोई गलती नहीं है और एनसीयूआई को अनापत्ति के मामले को प्रशासनिक मंत्रालय के पास ले जाना चाहिए। इसलिए मैं इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं करता हूँ। इससे सरकार और भी नाराज होगी”।
इसलिए, एनसीयूआई को प्रशासनिक मंत्रालय के विभिन्न निर्देशों के अनुसार, उनकी सेवा का बकाया एनसीयूआई द्वारा बिना किसी देरी के जारी किया जाना चाहिए”, मंगल जीत राय ने लिखा।
इस बीच कई सहकारी नेताओं ने कहा कि राय की असहमति एनसीयूआई के गले की हड्डी बन सकती है। उन्होंने बहुराज्य सहकारी समितियों को केंद्रीय रजिस्ट्रार विवेक अग्रवाल के एक सर्कुलर का जिक्र करते हुए कहा।
सर्कुलर में लिखा है, “विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थित बहु-राज्य सहकारी समितियों के लिए बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 की धारा 108 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, यह निर्देश दिया जाता है कि अधिनियम की धारा 110 के प्रावधानों के अनुसार दर्ज कार्यवाही कार्यवृत्त, बोर्ड के ऐसे निर्णयों के संबंध में जो बहुमत के आधार पर लिए गए हैं, सर्वसम्मति से नहीं, सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार के कार्यालय में बोर्ड की बैठक के सात दिनों के भीतर भेजे जाएंगे।”
मंगलवार को हुई जीसी की बैठक में इस मामले में सहकार भारती की भूमिका को काफी हद तक आलोचनात्मक बताया गया था। सहकार भारती के एक वरिष्ठ सदस्य ने “भारतीयसहकारिता” से कहा, “हमारे बारे में अच्छा नहीं बोला गया।”
हालांकि सहकार भारती मोहन मिश्र का बचाव नहीं करेगी। क्योंकि यह हमेशा माना जाता रहा है कि एनसीसीटी को एनसीयूआई से अलग होना चाहिए और वैश्विक मानकों को स्थापित करने वाले एक स्वायत्त प्रशिक्षण संस्थान के रूप में कार्य करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सहकार भारती ने इस मुद्दे पर पूर्व कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह को समझाकर एनसीसीटी को एनसीयूआई से अलग करने में भूमिका निभाई थी।
विडंबना यह है कि आज एनसीयूआई का नेतृत्व एक ऐसा व्यक्ति कर रहा है जो एनसीयूआई के पुराने नेताओं की तुलना में वैचारिक रूप से सहकार भारती के ज्यादा करीब है। तीन बार के सांसद और गुजरात कैबिनेट के पूर्व मंत्री, एनसीयूआई के अध्यक्ष दिलीप संघानी एक कट्टर भाजपा नेता हैं।
“भारतीयसहकारिता” से एक वरिष्ठ सहकार भारती नेता ने कहा कि इस मामले को जितनी जल्दी सुलझा लिया जाए उतना अच्छा है।