केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने गुजरात की राजधानी गांधीनगर में अमूलफेड डेयरी के आधुनिकतम सुविधाओं से युक्त 150 मीट्रिक टन प्रतिदिन क्षमता वाले मिल्क पाउडर प्लांट, बटर प्लांट, पैकेजिंग फिल्म प्लांट एवं ऑटोमेटिक रोबोटिक स्टोरेज व रिट्रिवल सिस्टम का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि अब अमूल देश का सबसे बड़ा मिल्क पाउडर उत्पादक बन चुका है। 85 करोड़ रूपए की लागत से मक्खन के प्लांट का भी आज उद्घाटन हुआ है।
अमूल के संचालन को सुगम बनाने के लिए ऑटोमेटिक रोबोटिक स्टोरेज व रिट्रीवल सिस्टम 23 करोड़ रुपए की लागत से आधुनिकतम तकनीक के साथ शुरू हुआ है। इसके साथ ही अमूल की पैकेजिंग की जरूरत को पूरा करने के लिए 50 करोड़ रूपए का एक संयंत्र भी यहां लगाया गया है।
शाह ने कहा कि अमूल के सहकारिता आंदोलन का विश्लेषण करने पर इसमें तीन महत्वपूर्ण अंगों का पता चलता हैं-पहला, दूध का उत्पादन करने वाली गुजरात के 18000 गाँवों की हमारी 36 लाख बहनें; दूसरा, इस दूध को उपभोक्ताओं तक पहुंचाना; स्वस्थ तरीके से दूध को अलग-अलग उत्पादों में बदलना; और तीसरा, विपणन। इन प्रक्रियाओं से उत्पाद सीधे अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचाया जाता है। इन तीनों अंगों को मजबूत करने के कार्यक्रम आज यहां पर शुरु हुए हैं।
उन्होंने कहा कि इतने विशाल देश और जनसंख्या को सर्वस्पर्शीय, सर्वसमावेशी विकास से जोड़ना है तो कोई साधारण मॉडल काम में नहीं आ सकता। 130 करोड़ की आबादी को एक साथ रखकर सभी तक विकास को पहुंचाना और विकास की प्रक्रिया में सबको हिस्सेदार बनाना बड़ा कठिन काम है। दुनिया भर में अर्थतंत्र के कई बड़े मॉडल हैं जो छोटी आबादी के लिए तो ठीक हो सकता हैं लेकिन भारत की ज़रूरत के अनुसार कौन सा आर्थिक मॉडल उपयुक्त होगा, यह बहुत बड़ा विषय है।
देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए इस मॉडल को परख लिया था कि इतनी बड़ी आबादी वाले देश में अगर सर्वस्पर्शीय, सर्वसमावेशी आर्थिक विकास का अगर कोई मॉडल हो सकता है तो केवल और केवल सहकारिता का मॉडल ही हो सकता है।
इसी कारण मोदी जी ने भारत सरकार में सहकारिता मंत्रालय शुरू किया है और अब सहकारिता के माध्यम से देश के करोड़ों कृषि और इसके साथ जुड़ी सेवाओं से जुड़े हुए हमारे भाइयों, बहनों तक आर्थिक लाभ और अर्थ तंत्र को पहुंचाने का काम सहकारिता के माध्यम से शुरू हुआ है, पीआईबी की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक।
केंद्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा, “जब मोदी जी ने सहकारिता मंत्रालय बनाया तो कई लोगों ने कई सवाल खड़े किए कि यह मंत्रालय क्या करेगा। लेकिन मेरे लिए गौरव की बात है कि मुझे देश का पहला सहकारिता मंत्री बनने का मौका देश के प्रधानमंत्री ने दिया। मैं मानता हूँ कि सहकारिता में न केवल देश के अर्थ तंत्र को नई गति देने की क्षमता है बल्कि देश के सभी लोगों को समृद्ध बनाने का मंत्र भी इसी क्षेत्र का है और अमूल इसका जीता जागता उदाहरण है।
“36 लाख बहनें परिश्रम और पारदर्शिता के साथ एक साथ काम करें तो क्या नहीं हो सकता है, इसका उदाहरण हम लोगों के सामने हैं। आप कल्पना कर सकते हो कि कई ऐसी बहनें होंगी जो आज भी पढ़ना लिखना नहीं जानती होगी मगर उनके बैंक अकाउंट के अंदर एक लाख रूपए का चेक जमा होता है और सालाना 75-80 लाख रुपया जमा होता है”।
सहकारिता का मूलमंत्र यही है कि हो सकता है हमारी क्षमता कम हो सकता है, ज्यादा पढ़े लिखे न हों, हमारे पास ज्यादा पूँजी न हो, मगर हम संख्या में बहुत ज़्यादा हैं। अगर हम सब एकत्रित हो जाते हैं तो कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। आज जब 36 लाख बहनें एक साथ एकत्रित हो जाती हैं तो अमूल का टर्नओवर 53 हज़ार करोड रुपए का हो जाता है।
उन्होंने कहा कि यह एक प्रकार से महिला सशक्तिकरण का सबसे सफल प्रयोग है। जो लोग महिला सशक्तिकरण के नाम पर एनजीओ चलाते हैं, उनसे मेरा अनुरोध है कि कोऑपरेटिव सोसाइटी चला लीजिए तो आप महिलाओं का ज्यादा सशक्तिकरण कर पाएंगे और यह अमूल ने करके दिखाया है।