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सारस्वत बैंक ने दिवालिया ओएमआरसी कंपनी को किया बेनकाब

सारस्वत बैंक ने एक आधिकारिक बयान जारी कर दिवालिया कंपनी रेंज मेडिकेयर एंड रिसर्च सेंटर प्राइवेट लिमिटेड” (ओएमआरसी) को बेनकाब किया है।

बता दें कि ओएमआरसी के निदेशक ने कोठरूड पुलिस स्टेशन (पुणे) में सारस्वत बैंक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक सहित बैंक के अन्य शीर्ष अधिकारियों पर ठगी का केस दायर कराया है।

अपने बयान में सारस्वत बैंक ने दावा किया कि ओएमआरसी कंपनी डिफॉल्टर रही है और ओटीएस के माध्यम से अपना बकाया चुकाने की कोशिश कर रही है लेकिन फिर भी भुगतान समय पर चुका नहीं पाई।

हम सोशल मीडिया पर प्रसारित खबरों के तथ्यों को आपके समक्ष रखा रहे हैंजिसमें पुणे के कोथरुड पुलिस स्टेशन में बैंक के अध्यक्षप्रबंध निदेशक और अन्य अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की बात कही जा रही है”, बयान के मुताबिक।

स संबंध में हम आपको सूचित करना चाहते हैं कि ऑरेंज मेडिकेयर एंड रिसर्च सेंटर प्राइवेट लिमिटेड के एक निदेशक ने ऋण वसूली की कार्रवाई से बचने के उद्देश्य से प्राथमिकी दर्ज कराई है ताकि वसूली प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न की जा सके। हम यह कार्रवाई दिसंबर 2021 में तहसीलदार द्वारा जारी नवीनतम आदेश के अनुसार कर रहे हैं

जकल कुछ कर्जदार ऐसी हरकत कर रहे हैं ताकि कर्ज वसूली कार्रवाई में बाधा उत्पन्न की जा सके। सारस्वत बैंक किसी भी प्रकार के दबाव के आगे नहीं झुकेगा और लोन डिफॉल्टर कंपनियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगा”, बैंक ने कहा।

बयान के अनुसार, “रफेसाई अधिनियम के प्रावधान के तहतहम बताना चाहते हैं कि ओएमआरसी कंपनी बैंक का डिफॉल्टर उधारकर्ता है और वर्तमान मेंहमें इस कंपनी से लगभग 16 करोड़ की वसूली करनी है। इस संबंध में बैंक के प्रतिभूतिकरण अधिकारी ने नोटिस भी जारी किया था

उधारकर्ता ने ओटीएस के माध्यम से बैंक का कर्ज चुकाने की भी पहल की थी लेकिन एक सहमत राशि का भुगतान करने में भी कंपनी विफल रही। इसलिएबैंक द्वारा संपत्ति पर कब्जा करने की आशंका सेउधारकर्ता ने बैंक के अध्यक्षप्रबंध निदेशक और बैंक के अधिकारियों के खिलाफ यह झूठा मामला दर्ज कराया है। हम अपने ऊपर लगे सभी आरोपों का खंडन करते हैंबैंक ने कहा

सारस्वत बैंक ने अपने बयान में खाते का निम्नलिखित विवरण भी दिया है: 

2011 – ओएमआरसी की स्थापना डॉक्टरों ने की थी और अस्पताल के निर्माण और चिकित्सा उपकरणों की खरीद के लिए बैंक द्वारा एक परियोजना ऋण प्रदान किया गया था।

2013 – कंपनी समय पर प्रस्तावित प्रोजेक्ट पूरा करने में विफल रही जिसके परिणामस्वरूप परियोजना लागत में वृद्धि हुई और इसके लिए बैंक को अतिरिक्त ऋण देना पड़ा।

2016 – प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया और खाते को एनपीए घोषित कर दिया गया।

2017 – वित्तीय संकट से निपटने के लिएओएमआरसी के निदेशकों ने समीर पाटिल समूह को कंपनी की 71% हिस्सेदारी दी और श्रीमती स्मिता समीर पाटिल को बोर्ड में निदेशक के रूप में शामिल किया (जो उक्त प्राथमिकी की शिकायतकर्ता हैं)

समूह ने खाते में केवल अतिदेय राशि का भुगतान किया और मूलधन का भुगतान नहीं किया गया इसलिए खाते को एक मानक खाते की तरह उन्नत किया गया।

चुकौती प्रतिबद्धता को पूरा करने में विफलता के कारण खाते को फिर से एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया गया था और प्रतिभूतिकरण कार्यवाही शुरू की गई थी।

2018 – जिला मजिस्ट्रेटपुणे ने गिरवी रखी संपत्ति के भौतिक कब्जे के लिए अदालत का आदेश जारी किया। भौतिक कब्जा नहीं लिया गया था क्योंकि कंपनी ने एकमुश्त निपटान के प्रस्ताव के साथ 3.66 करोड़ रुपये का चेक जमा किया था।

ओटीएस को बैंक द्वारा अनुमोदित किया गया था।

निदेशकों ने व्यक्तिगत रूप से 2.50 करोड़ रुपये का भुगतान किया।

कंपनी के अनुरोध पर संपत्ति का भौतिक कब्जा स्थगित कर दिया गया था।

कंपनी द्वारा दिया गया 3.66 करोड़ का चेक बिना भुगतान (बाउंस) लौट गयाइसलिए बैंक ने ओएमआरसी को नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत नोटिस जारी किया।

तहसीलदार कार्यालय ने संपत्ति का कब्जा लेने के लिए विभिन्न तिथियां जारी कींलेकिन उसे तहसीलदार कार्यालय द्वारा निष्पादित नहीं किया गया। 

बैंक के खिलाफ मुंबई उच्च न्यायालय में ओएमआरसी द्वारा दायर एक अवमानना याचिका का भी अदालत ने निपटारा किया था।

ओएमआरसी ने विभिन्न हथकंडे अपनाकर बैंक की कार्रवाई में रोड़ा डालने का प्रयास किया।

2021 – तहसीलदार ने 27 दिसंबर को संपत्ति पर कब्जे करने का आदेश जारी किया।

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