सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था-एनसीयूआई से जुड़ी कई सहकारी निकायों का कहना है कि बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम 2002 में किये जा रहे संशोधन के कुछ प्रावधान अलोकतांत्रिक और सहकारिता के सिद्धांतों के खिलाफ हैं।
पाठकों को ज्ञात होगा कि प्रस्तावित मसौदा में चुनाव, सुशासन, भर्ती, पारदर्शिता और दक्षता पर ध्यान केंद्रित किया गया है ताकि सदस्यों के हितों को सुरक्षित रखा जा सके।
हाल ही में एनसीयूआई ने मसौदा संशोधन के प्रावधानों पर चर्चा करने के लिए हाइब्रिड मोड के माध्यम से एक बैठक का आयोजन किया था, जिसमें राष्ट्रीय स्तर की सहकारी समितियों के प्रतनिधियों ने अपने-अपने विचार रखें।
मसौदा संशोधन में एक प्रावधान प्रस्तावित किया गया है कि, सहकारी समितियां सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना शेयर रिडीम नहीं कर सकती हैं। और शेयर अंकित मूल्य या बुक वैल्यू के आधार पर रिडीम होगा। वर्तमान में शेयरों को अंकित मूल्य पर रिडीम किया जाता हैं क्योंकि सहकारी समितियों के शेयर न तो व्यापार योग्य होते हैं और न ही स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होते हैं। बुक वैल्यू पर शेयर पूंजी की वापसी करना व्यावहारिक नहीं है क्योंकि यह समानता के सिद्धांत के खिलाफ है।
प्रस्तावित प्रावधान में सहकारी समितियों के उप-नियमों के हिसाब से कर्मचारियों की संख्या, उनके पदनाम और सीईओ सहित भर्ती प्रक्रिया तय की जाती है, बशर्ते कि भर्ती प्रक्रिया केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित नियमों के अधीन होगी। सदस्यों की राय है कि संविधान के अनुच्छेद 43ए के अनुसार सहकारी समितियों का व्यावसायिक प्रबंधन सहकारी समितियों के स्वायत्त और लोकतांत्रिक कामकाज में निहित है।
इसलिए प्रस्तावित संशोधन संवैधानिक रूप से उपयुक्त नहीं है, खासकर उन बहु-राज्य सहकारी समितियों के लिए जहां सरकार के पास ज्यादा शेयर नहीं है। 97वें सीएए के अनुसार सहकारी समितियों को बिना किसी प्रतिबंधात्मक प्रावधान के अनुकूल माहौल प्रदान किया जा सकता है, एनसीयूआई की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार।
एक अन्य प्रावधान के संबंध में है कि बहु-राज्य सहकारी समिति में किसी भी निदेशक के रिश्तेदार को सीईओ या फिर कर्मचारी के रूप में भर्ती नहीं किया जाएगा। इस पर सहकारी नेताओं ने प्रतिक्रिया दी कि बहु-राज्य सहकारी समितियों के मौजूदा निदेशकों के रिश्तेदारों को रोजगार से वंचित करने से किसी भी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
इसके अलावा, एक अन्य मसौदा उप-नियमों के प्रावधान के संबंध में, एक सदस्य, जो किसी भी बहु-राज्य सहकारी समितियों या बैंक के बोर्ड में निदेशक रहा है, जहां किसी कारण से बोर्ड को हटा दिया गया हो, वह 5 वर्ष की अवधि के लिए बोर्ड के निदेशक के रूप में किसी अन्य बहु-राज्य सहकारी समिति या सहकारी बैंक में चुने जाने के लिए पात्र नहीं होगा। इस संदर्भ में सदस्यों ने महसूस किया कि प्रस्तावित खंड मनमाना है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
मसौदा संशोधन से संबंधित एक अन्य प्रावधान के संबंध में कि भारत सरकार संकटग्रस्त बहु-राज्य सहकारी समितियों के पुनरुद्धार के लिए सहकारी पुनर्वास, पुनर्निर्माण और विकास कोष की स्थापना कर सकती है, जहां बहु-राज्य सहकारी समितियां जो तीन साल से लाभ में हैं वह सदस्य निधि को क्रेडिट कर सकते हैं। इस संबंध में सदस्यों ने महसूस किया कि इससे लाभ कमाने वाली बहु राज्य सहकारी समितियों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा और व्यवसाय बढ़ाने के लिए धन की आवश्यकता को बाधित करेगा।
गैर-क्रेडिट एमएससीएस के लिए आरबीआई के पैनल से लेखा परीक्षकों की नियुक्ति के प्रस्तावित खंड से संबंधित एक अन्य मसौदा प्रावधान के संबंध में, सदस्यों ने महसूस किया कि इससे ऐसी समितियों के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इसलिए बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम 2002 में मौजूदा प्रावधान को बरकरार रखा जा सकता है।
प्रस्तावित खंड के संबंध में कि सहकारी शिक्षा निधि को केंद्र सरकार द्वारा बनाए जाएगा और एनसीयूआई या केंद्र सरकार द्वारा तय की गई किसी अन्य एजेंसी के माध्यम से सहकारी शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए इसे उपयोग किया जा सकता है, सदस्यों ने महसूस किया कि इससे एनसीयूआई का महत्व कम हो जाएगा, जो सहकारी शिक्षा और प्रशिक्षण पर ध्यान देने के साथ सहकारी आंदोलन का एक शीर्ष निकाय है, इसलिए एनसीयूआई को फंड को इकट्ठा करने और प्रबंधित करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।