भारतीय रिज़र्व बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित), अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों, सहकारी बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (आवास वित्त कंपनियाँ सहित) के लिए धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन पर तीन संशोधित मास्टर निदेश जारी किए।
ये मास्टर निदेश पूर्व के मास्टर निदेशों, परिपत्रों और उभरते मुद्दों की व्यापक समीक्षा के आधार पर तैयार किए गए हैं। ये मास्टर निदेश सिद्धांत-आधारित हैं और विनियमित संस्थाओं (आरई) में धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन के समग्र अभिशासन और निगरानी में बोर्ड की भूमिका को मजबूत करते हैं।
इन निदेशों में विनियमित संस्थाओं में मजबूत आंतरिक लेखापरीक्षा और नियंत्रण ढांचा स्थापित करने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।
ये निदेश अब क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, ग्रामीण सहकारी बैंकों और आवास वित्त कंपनियों पर भी लागू कर दिए गए हैं, जिसका उद्देश्य ऐसे विनियमित संस्थाओं में बेहतर धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन प्रणालियों और ढांचे को बढ़ावा देना है।
इन मास्टर निदेशों के जारी होने के साथ ही इस विषय पर मौजूदा 36 परिपत्र वापस ले लिए गए हैं। ऐसा, मौजूदा अनुदेशों को युक्तिसंगत बनाने तथा विनियमित संस्थाओं पर अनुपालन बोझ को कम करने के इरादे से किया गया है।
नए निदेश में सहकारी बैंकों को धोखाधड़ी के मामलों की निगरानी और अनुवर्ती कार्रवाई के लिए बोर्ड की एक विशेष समिति (एससीबीएमएफ) स्थापित करने को कहा गया है।। इस समिति में मुख्य कार्यकारी अधिकारी और कम से कम दो निदेशक शामिल होंगे, जिनमें से एक समिति का नेतृत्व करेगा। छोटे बैंकों, जैसे टियर 1 और 2 यूसीबी और 1000 करोड़ रुपये से कम जमा वाले एससीबी/सीसीबी के पास समान भूमिकाओं के साथ कार्यकारी अधिकारियों की एक समिति (सीओई) बनाने का विकल्प है।
इस समिति की जिम्मेदारी धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन की देखरेख करना होगा। आरबीआई ने कहा कि राज्य सहकारी बैंकों और केंद्रीय सहकारी बैंकों को निर्धारित प्रारूपों और प्रक्रियाओं का उपयोग करके नाबार्ड को धोखाधड़ी की घटनाओं के बारे में बताना चाहिए।
बैंकों को असामान्य गतिविधियों का पता लगाने के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर वित्तीय लेन-देन सहित वित्तीय लेन-देन की निगरानी और विश्लेषण करने के लिए एक समर्पित एमआईएस इकाई या एनालिटिक्स सेटअप की आवश्यकता होती है।