
यह सर्वविदित है कि मुख्यधारा की मीडिया सहकारी क्षेत्र की कार्यप्रणाली से अधिक परिचित नहीं है, लेकिन अवसर मिलते ही पूरे क्षेत्र को बदनाम करने का प्रयास न केवल अनुचित बल्कि निंदनीय भी है।
हाल ही में न्यू इंडियन कोऑपरेटिव बैंक घोटाले के बाद ऐसा ही एक मामला सामने आया, जब एक प्रमुख समाचार पत्र ने कुछ प्रतिष्ठित अर्बन कोऑपरेटिव बैंकों के कामकाज पर संदेह व्यक्त किया।
ये बैंक दशकों से अपनी साख बनाए हुए हैं और राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कर चुके हैं। इनमें से कुछ को केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह द्वारा उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित भी किया गया है।
हालांकि, उक्त समाचार पत्र में प्रकाशित भ्रामक रिपोर्ट ने सहकारी बैंकिंग क्षेत्र में हलचल मचा दी। प्रमुख शहरी सहकारी बैंकों ने इस रिपोर्ट की कड़ी आलोचना की, जिसके बाद समाचार पत्र को बैकफुट पर जाना पड़ा और अंततः उसे स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा, जिसमें उसने लिखा— “इस गलती के लिए खेद है।”
इस विवाद ने सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के प्रति मीडिया और आम धारणा में मौजूद भेदभाव पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब कोई निजी या सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक किसी घोटाले में फंसता है, तो केवल उस बैंक को जिम्मेदार ठहराया जाता है। लेकिन, अगर किसी सहकारी बैंक से जुड़ा कोई मामला सामने आए, तो पूरे सेक्टर को संदेह के घेरे में डाल दिया जाता है।
यह सच है कि कुछ सहकारी बैंकों में प्रबंधन संबंधी चुनौतियां हो सकती हैं, लेकिन यह मान लेना कि पूरा सहकारी बैंकिंग क्षेत्र कुप्रबंधन का शिकार है, पूरी तरह अनुचित है। अधिकांश शहरी सहकारी बैंक पूरी दक्षता और पारदर्शिता के साथ कार्य कर रहे हैं और छोटे व्यवसायों, निम्न-आय वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर तबके की वित्तीय जरूरतें पूरी कर रहे हैं।
यह विवाद 20 फरवरी 2025 को तब शुरू हुआ, जब एक प्रमुख अंग्रेजी समाचार पत्र ने एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था— “स्कैम स्टॉर्म इन कोऑपरेटिव बैंक”। इस रिपोर्ट में महाराष्ट्र के तीन प्रमुख सहकारी बैंकों सहित अन्य बैंकों पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए गए।
हालांकि, इन बैंकों का किसी भी घोटाले से कोई संबंध नहीं था, न ही भारतीय रिजर्व बैंक ने उन पर किसी भी प्रकार की वित्तीय पाबंदी लगाई थी।
रिपोर्ट प्रकाशित होने के तुरंत बाद, इन बैंकों ने सार्वजनिक रूप से झूठे आरोपों की निंदा करते हुए स्पष्टीकरण जारी किया।
बैंकों ने समाचार पत्र से बिना शर्त माफी मांगने की मांग की और चेतावनी दी कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो मानहानि का मुकदमा दायर किया जाएगा। बढ़ते विरोध के बीच अखबार को अंततः बैकफुट पर जाना पड़ा और “त्रुटि के लिए खेद” जताना पड़ा।
यह घटना मीडिया की जिम्मेदारी, निष्पक्षता और तथ्य-जांच की आवश्यकता को रेखांकित करती है। किसी भी समाचार को प्रकाशित करने से पहले गहन पड़ताल और संतुलित रिपोर्टिंग आवश्यक है, ताकि उन संस्थानों की छवि खराब न हो जो वित्तीय ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ कार्य कर रहे हैं।