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त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय: सहकारी आंदोलन के लिए स्वर्णिम भविष्य: संघानी

भारत में सहकारी आंदोलन को नई दिशा देने और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित करने के उद्देश्य से सरकार ने त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव रखा था। अब यह सपना साकार हो गया है, क्योंकि त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा दोनों की मंजूरी मिल चुकी है। इसके साथ ही यह विश्वविद्यालय न केवल सहकारी शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण को बढ़ावा देगा, बल्कि सहकारी क्षेत्र को अधिक पेशेवर और प्रभावी बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

भारत में सहकारी आंदोलन: एक संक्षिप्त परिचय

भारत में सहकारी आंदोलन की शुरुआत औपनिवेशिक काल में हुई थी। 1904 में सहकारी समितियों के लिए पहला कानून लाया गया, जिसने इस आंदोलन को एक संरचित स्वरूप दिया। आज, भारत में सहकारी समितियाँ कृषि, बैंकिंग, डेयरी, आवास, उपभोक्ता वस्तुएं और अन्य क्षेत्रों में सक्रिय हैं। अमूल, इफको और कृभको जैसी संस्थाएं इसकी सफलता के जीवंत उदाहरण हैं।

हालाँकि, सहकारी क्षेत्र आज भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है, जैसे डिजिटल तकनीक की कमी, प्रतिस्पर्धा में पिछड़ना और व्यावसायिक कौशल का अभाव। त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय का उद्देश्य इन सभी चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करना है।

त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना के उद्देश्य

इस विश्वविद्यालय की स्थापना निम्नलिखित उद्देश्यों को लेकर की गई है:

  1. युवाओं के लिए रोजगारोन्मुख शिक्षा – सहकारी प्रबंधन, वित्तीय समावेशन, डिजिटल सहकारिता, सहकारी विपणन जैसे क्षेत्रों में विशेष शिक्षा के माध्यम से युवाओं को तैयार करना।

  2. सहकारी संगठनों का सशक्तिकरण – पेशेवर प्रशिक्षण और आधुनिक शोध से सहकारी संस्थाओं को अधिक प्रभावी बनाना।

  3. डिजिटल युग में सहकारी आंदोलन का आधुनिकीकरण – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिटिक्स, ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों का सहकारी क्षेत्रों में समावेश।

  4. वैश्विक नेटवर्किंग – अंतरराष्ट्रीय सहकारी संगठनों से सहयोग बढ़ाकर भारतीय सहकारी क्षेत्र को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बनाना।

रोजगारोन्मुख पाठ्यक्रम: युवाओं के लिए नया करियर विकल्प

यह विश्वविद्यालय सहकारी क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्रदान करने वाला देश का पहला संस्थान होगा। इसके पाठ्यक्रम व्यावहारिक, उद्योग-संलग्न और रोजगारोन्मुख होंगे, जैसे:

  • सहकारी प्रबंधन

  • सहकारी वित्त

  • डिजिटल सहकारिता

  • सामुदायिक विकास और सहकारिता

  • कृषि और ग्रामीण सहकारिता

यह कोर्स युवाओं को न केवल ज्ञान देंगे बल्कि उन्हें सहकारी संस्थाओं में कार्य करने के लिए तैयार भी करेंगे। विश्वविद्यालय से डिग्री या डिप्लोमा प्राप्त करने वालों को प्राथमिकता के साथ नौकरियों में अवसर मिलेंगे।

शोध, प्रशिक्षण और नवाचार का केंद्र

विश्वविद्यालय सहकारी शिक्षा के साथ-साथ शोध और प्रशिक्षण को भी विशेष प्राथमिकता देगा:

  • सहकारी नीतियों पर अनुसंधान

  • कार्यशालाएँ और प्रशिक्षण कार्यक्रम

  • नवाचार और तकनीकी समावेशन – जैसे AI, डेटा एनालिटिक्स, ब्लॉकचेन आदि का प्रयोग।

‘विकसित भारत 2047’ और सहकारी आंदोलन

भारत सरकार के ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य में सहकारी क्षेत्र एक अहम भूमिका निभा सकता है। यह विश्वविद्यालय इस दिशा में इन पहलुओं से योगदान देगा:

  1. आत्मनिर्भर भारत – स्थानीय उत्पादन व विपणन को बढ़ावा देकर।

  2. रोजगार सृजन – लाखों युवाओं को स्वरोजगार एवं नौकरियों के अवसर।

  3. कृषि क्रांति – कृषि सहकारी समितियों के डिजिटलीकरण से किसानों की आमदनी में वृद्धि।

  4. वित्तीय समावेशन – ग्रामीण क्षेत्रों को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ना।

  5. स्थानीय से वैश्विक – भारतीय सहकारी संस्थानों को वैश्विक मंच पर ले जाना।

  6. हरित और सतत विकास – पर्यावरण-अनुकूल सहकारी मॉडल को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय भारत के सहकारी आंदोलन को एक नई दिशा देगा और उसे आधुनिकता, नवाचार और पेशेवर प्रबंधन से जोड़कर स्वर्णिम युग की ओर अग्रसर करेगा। यह न केवल युवाओं के लिए एक वैकल्पिक और आकर्षक करियर विकल्प प्रस्तुत करेगा, बल्कि सहकारी संस्थाओं को तकनीकी रूप से सशक्त और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाएगा।

– दिलीप संघाणी (अध्यक्ष, एनसीयूआई, इफको एवं गुजकोमासोल, पूर्व मंत्री, गुजरात)

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