एनसीसीटी से संबंधित मामलों में मंत्रालय की दखलअंदाजी से जुड़ी खबरों को भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष ने सिरे से खारिज कर दिया है। इस मुद्दे पर डॉ चंद्र पाल सिंह यादव ने सफाई देते हुए कहा कि एनसीयूआई की मंत्रालय से कोई लडाई नहीं है।
उन्होनें यह भी कहा कि मंत्रालय ने कभी अपनी बात फरमान रूप में नहीं भेजा था और जो हमारे पास आया वह प्रस्ताव के तौर पर ही आया। गुरुवार की निदेशकमंडल की बैठक में सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया है, उन्होंने जोड़ा।
ग्रांटइनऐड का विचार सबसे पहले निदेशक मंडल की बैठक में शुरू हुआ। बैठक में महसूस किया गया कि सहायता नियमों में संशोधन की जरूरत है, उन्होनें कहा।
इतिहास के पन्नों में झांकते हुए चंद्र पाल सिंह ने कहा कि सिसोदिया के समय में जब शरद पवार मंत्री थे, तब प्रशिक्षण की निगरानी के लिए एक अलग इकाई बनाने की बात आई थी। इस इकाई के लिए सरकार ने सौ करोड़ रुपए दिए थे, और सहकारी क्षेत्र द्वारा सौ करोड़ रुपए इकाट्ठा किया गया। पांच साल के बाद यह निधि तीन सौ करोड़ रुपए हो गई। एनसीयूआई के अध्यक्ष और दो सरकारी अधिकारी समेत दो कापरेर्टस के साथ समिति का गठन किया गया।
एनसीयूआई के अध्यक्ष ने कहा कि ये पैसा जितना सरकार का है उतना ही हमारा भी है। एनसीसीटी की बैठक में सदस्यों नें मुझे मंत्रालय से इस मामले में चर्चा करने के लिए अधिकृत किया है।
पाठकों को पता होगा कि मंत्रालय ने 3 दिसंबर को चिट्ठी भेजकर एनसीयूआई के अध्यक्ष के अधिकारों को हटाने का सुझाव दिया था। गौरतलब है कि एनसीसीटी के 21 सदस्यीय बोर्ड की बैठक हुई थी।
पत्र में ये सुझाव भेजा गया कि एनसीयूआई के अध्यक्ष को प्रशासनिक, वित्त समितियों के साथ साथ वेमनीकोम की अध्यक्षता से भी मुक्त कर उनकी जगह अतिरिक्त सचिव को दे दी जाए लेकिन बोर्ड इसके लिए तैयार नही हुआ।