गुजरात सरकार ने फैसले लिया है कि जिन सहकारी संस्थाओं में अभी तक चुनाव नहीं हुये है उन संस्थाओं में “संरक्षकों” की नियुक्ति कि जाएगी। गौरतलब है कि सरकार के इस फैसले ने पूरे सहकार जगत में खलबली मचा दी है।
सरकार का कहना है कि गुजरात सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक 2015 में संशोधन की वजह से ये फैसला लिया गया जब्कि विपक्ष दल ने आरोप लगाया है कि सरकार सहकारी संस्थाओं से काग्रेंस का सफाया करना चाहती है। गौरतलब है कि राज्य की लगभग 100 सहकारी संस्थाओं में से तीन सबसे बड़ी संस्थाओं के अध्यक्ष नातू पटेल और विपुल चौधरी जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता फिलहाल राज्य के सहकारी क्षेत्र में चर्चा के विषय बने हुये है।
एमडीसीबी और गुज्कोमॉसोल के अध्यक्ष नातू पटेल पर यूरिया घोटाले में लिप्त होने का आरोप लगा था और पटेल को दस साल से संस्थाओं में चुनाव देरी से कराने को लेकर भी आरोपी ठहराया गया है। वहीं महेसाणा और दूधसागर दुग्ध संघ के अध्यक्ष विपुल चौधरी के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे है और जिन्हें हाल ही में गुजरात उच्च न्यायालय ने महेसाण स्थित दूधसागर के अध्यक्ष पद से हटा दिया था।
उल्लेखनीय है कि नातू पटेल सहकारी अग्रणी इफको के भी निदेशकमंडल के सदस्य है। पटेल ने आईसीए की बोर्ड में निदेशक पद के लिए चुनाव लड़ा था लेकिन यूरीया घोटले के चलते वह चुनाव हार गये थे। डॉ यू.एस अवस्थी ने अदित्य यादव को इफको के दूसरे उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरा था और पिछले साल आईसीए में हुये चुनाव में यादव को चुन लिया गया था।
सूत्रों का कहना है कि यह लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच वर्चस्व की लड़ाई है। नातू पटेल कांग्रेसी नेता है और 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में महेसाणा के नितिन पटेल के खिलाफ चुनाव लड़ा था। नितिन पटेल राज्य सरकार के प्रवक्ता है।
गुजरात सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक 2015 को सरकार द्वारा पिछले महीने हरी झंडी दिखा दी गई थी और हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में यह निर्णय लिया गया कि महेसाणा दुग्ध उत्पादक सहकारी मंडल और महेसाणा जिला सहकारी बैंक में “संरक्षकों” की नियुक्ति की जाएगी। सरकार सहकारी समितियों का प्रभार लगभग एक वर्ष तक संभाल सकती है, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक।|
संशोधित अधिनियम में महत्वपूर्ण प्रावधान सहकारी संस्थाओं में संरक्षकों की नियुक्ति करना है। नए कानून में कहा गया है कि निर्वाचित बोर्ड पांच साल का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही भंग कर दी जाएगी। बोर्ड अगले चुनाव तक कार्य कर सकती है। संशोधित धारा 74 (डी) के अनुसार जिन सोसायटियों का गुजरात सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक 2015 में संशोधन के ठीक पहले गठन हुआ है, जिनमें नई बोर्ड का गठन पुराने बोर्ड के कार्यकाल खत्म होने से पहले चुनाव नही हुआ है या तीन महीने की अवधि के भतीर बोर्ड को निर्वाचित नहीं किया गया हो तो इस मामले में रजिस्ट्रार लिखित रूप में आदेश देगा कि जब तक की नई प्रबंधक कमैटी निर्वाचित नहीं हो जाती है तबतक
समितियों में लगभग एक वर्ष की अवधि के लिए व्यक्ति या कमेटी सदस्यों को सरंक्षक के तौर पर नियुक्त किया जाएगा।
नए कानून में सहकारी समितियों का ऑनलाइन लेखापरिक्षक किया जाएगा। इसके अलावा जिन पदाधिकारियों के कार्यकाल दो या ढांई साल से अधिक हो गया होगा उन्हें सहकारी संस्था से बॉयकाट किया जाएगा। संशोधित अधिनियम के अनुसार पांच साल के कार्यकाल को ढाई साल में बदल दिया गया है, इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार|
गुजरात की भाजपा सरकार ने कहा है कि यह राजनितिक कदम नहीं है बल्कि सहकारी समितियों को ढंग से परीचालन को लेकर अधिनियम में संशोधन किया गया है।