भारतीय रिजर्व बैंक की हाई पावर कमेटी द्वारा हाल ही में जारी सिफारिशों का शहरी सहकारी बैंकों से जुड़े कॉपोर्रेटरों ने पुरजोर विरोध किया है। हाई पावर कमेटी ने इन सिफारिशों में शहरी सहकारी बैंकों को वाणिज्यिक संस्थाओं में तब्दील करने का प्रस्ताव रखा है।
नेफकॉब की बोर्ड और साधारण सभा ने प्रस्ताव पारित कर इन सिफारिशों को सिरे से खारिज किया है। नेफकॉब निराश है कि ये सिफारिशों 97वां संवैधानिक संशोधन के खिलाफ है, जो किसी भी व्यक्ति को सहकारी समिति गठन करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। ये जानकारी दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित एक प्रेस वार्ता में नेफकॉब के अध्यक्ष मुकंद अभ्यंकर ने बताई।
अभ्यंकर ने कहा कि नेफकॉब का मानना है कि ये सिफारिशों 100 साल से भी ज्यादा पुराने सहकारी आंदोलन को निजी हाथों में सौंपने जैसा है।
अगर सहकारी बैंकों को निजी क्षेत्र के बैंकों में तब्दील किया गया, तो सालों से चल रहे इस आंदोलन को काफी हानि होगी। सहकारी आंदोलन तब से है जब न तो निजि क्षेत्र था, न सरकारी क्षेत्र और न ही आरबीआई था, ऐसा नेफकॉब का मानना है।
वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में शहरी सहकारी बैंक छोटे बैंक हो सकते है लेकिन देश-भर में इनकी बड़ी संख्या हैं। शहरी सहकारी बैंक लाभ कमाने के लिए व्यापार नहीं करती, बल्कि इनके माध्यम से गरीबों के जीवन स्तर में सुधार लाये जाने का प्रयास करती है।
नेफकॉब ने निर्णय लिया है कि देश के प्रत्येक यूसीबी अपनी वार्षिक आम बैठक में इस रिपोर्ट के खिलाफ प्रस्ताव पारित करेगी और भारतीय रिजर्व बैंक को प्रस्तुत करेगी, जिससे कि सिफारिशों को लागू नहीं किया जा सके। नेफकॉब को लगता है कि भारतीय रिजर्व बैंक का यह अधिनियम “पुलिसिया कानून” की तरह हैं।
दरअसल आरबीआई के डिप्टी गवर्नर आर.गांधी की अध्यक्षता में पिछले सप्ताह हुई बैठक में इन सिफारिशों को यूसीबी के व्यापार आकार, नए लाइसेंस के मुद्दें को ध्यान में रखते हुए जारी किया था।
गौरतलब है कि 30 जनवरी 2015 को रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर श्री आर.गांधी की अध्यक्षता में हाई पावर कमैटी का गठन किया था, जिसका काम यूसीबी का आकार, मुद्दों की जांच, शहरी सहकारी बैंकों को नया लाइसेंस जारी करने आदि को देखना था।
पैनल ने कहा था कि बहुराज्य शहरी सहकारी बैंकों जिनका कारोबार 20 हजार करोड़ से अधिक है, उन्हें वाणिज्यिक बैंकिंग का लाइसेंस दिया जाएगा। नेफकॉब इन तमाम सिफारिशों का विरोध करती है।