भारत कृषि प्रधान देश है। पौष्टिक आहार के लिए अन्न के अलावा सब्जियों और फलों का भी महत्व है। बागवानी और उद्यान कृषि के द्वारा इन महत्वपूर्ण आहार तत्वों का उत्पादन होता है। उत्तर पूर्व राज्यों के विभिन्न जलवायु क्षेत्र एवं लम्बी वर्षा ॠतु बागवानी के विस्तार के लिए अत्यंत उपयुक्त है। आधुनिक कृषि तकनीकों के कार्यान्वन द्वारा इस क्षेत्र को देश का सबसे बड़ा बागवानी उत्पाद निर्यातक बनाया जा सकता है।
मैं ये अत्यंत गर्व से कहता हूँ कि भारत फलों और सब्जियों के उत्पादन में विश्व में दूसरे नंबर पर आता है। किन्तु यह भी सत्य है कि हम अभी वास्तविक क्षमता से काफी पीछे हैं। मिजोरम में करीब 1.1 लाख हेक्टेयर में बागवानी की जाती है, जबकि इसके लिए 11.56 लाख हेक्टर की क्षमता प्रदेश में उपलब्ध है। यह वास्तविक क्षमता से करीब 10 गुना कम है। पूरे पूर्वोत्तर भारत में स्थिति इससे मिलती जुलती है।
यहां के पहाड़ी क्षेत्र खाद्यान उत्पादन के लिए अधिक उपयुक्त नहीं हैं। जबकि यहां बागवानी फसलें जैसे फल, सब्जी, मसाले, पुष्प एवं औषधि की खेती अत्यंत सुलभता से हो सकती है।
इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि बागवानी को बढ़ावा देकर पूर्वोत्तर राज्यों की समस्याएं जैसे खाद्य सुरक्षा, रोजगार की कमी एवं गरीबी का समाधान किया जा सकता है।
भारत के नागरिकों की आर्थिक स्थिति सुधर रही है और साथ-साथ कृषि उत्पादों की मांग भी बढ़ रही है। सड़क और रेल परिवहन में हुई उन्नति से पूर्वोत्तर भारत के किसानों के कृषि उत्पादों की दूरदराज के बाजारों तक पहुँच सुलभ हो गयी है।
माननीय प्रधान मंत्री जी की फसल बीमा योजना के कार्यान्व के बाद अव कृषि में आर्थिक जोखिम न के बराबर रह गया है। इसका फायदा मिजोरम जैसे राज्यों को बहुत होगा जहां सीमांत, छोटे एवं मझोले कृषक अधिक हैं।
पूर्वोत्तर भारत में केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाएं पहले से ही बागवानी के विकास के लिए काम कर रही हैं, जैसे Mission for Integrated Development of Horticulture (MIDH) के अंतर्गत Horticulture Mission for North East & Himalayan States (HMNEH) National के Horticulture Board (NHB) मिजोरम के कृषि विकास एवं समृद्धि के लिए विभिन्न योजनाऐं जैसे राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY), ATMA, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन इत्यादि कार्यान्वित हैं। कृषि रसायन जैसे कीटनाशक एवं उर्वरक के अंधाधुन्द उपयोग से भारत कुछ राज्यों में मृदा और जल विषाक्त हो गये हैं तथा खेती की उर्वरकता भी कम हो गई है। कीटनाशक प्रतिरोधी कीटों की संख्या भी बढ़ रही है।
इन क्षेत्रों में मनुष्यों की नई-नई बीमारियां उत्पन्न हो रही है। इस भयानक स्थिति ने विश्व भर के नेताओं, बुद्धिजीवियों और वैज्ञानिकों की चिंतित कर दिया है। जैविक कृषि जो कि कृषि सहउत्पादों के द्वारा की जाती है इस प्रकार के जोखिम से मुक्त है। सिक्किम ने विश्व को दिखा दिया है कि जैविक कृषि व्यवसायिक स्तर पर की जा सकता है।
मिजोरम में कृषि रसायन का आयात कम है तथा इसके पूर्ण जैविक कृषि राज्य बनने की संभावना बहुत अच्छी है, इसलिए मैं माननीय मुख्यमंत्री जी से इस पर बल देने का अनुरोध करना चाहता हूँ।
माननीय प्रधान मंत्री जी ने पूर्वोत्तर भारत को पूर्ण जैविक कृषि संपन्न क्षेत्र बनाने के लिए 100 करोड़ रूपये की योजना को मंजूरी दी है। बागवानी के द्वारा भूस्खलन जैसी प्राकृतिक विपदा की भी सम्भावना कम की जा सकती है। केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इम्फाल, जो कि देश का अपनी तरह का पहला संस्थान है क्षेत्र के विकास के लिए केन्द्र सरकार द्वारा बनाया गया था। मैं अत्यंत गर्व से कहता हूँ कि विश्वविद्यालय ने यहां के छह राज्यों में सात विद्यालय स्थापित किये हैं तथा आठवां विद्यालय अब मिजोरम में स्थापित किया जा रहा है।
पशुचिकित्सा विद्यालय नागालैंड में होने के साथ ही पूर्वोत्तर के सातों राज्यों में केन्द्रीय कृषि विश्व विद्यालय का विस्तार हो जायेगा। हमें आशा है कि इस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इन राज्यो के विकास के लिए तत्पर रहेंगे तथा नए नए शोध एवं प्रसार सेवाओं के माध्यम से कृषि विकास एवं कृषण कल्याण को बढ़ावा देंगे, पीआईबी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार।