नागपुर सहकारिता आंदोलन की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए उपराष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी ने सहकार आंदोलन कमजोर पड़ने के कई कारण गिनाए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकार की भूमिका और हस्तक्षेप आवश्यकता से अधिक है। इससे सहकारी संस्थाएं सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की आपूर्ति का साधन भर बन कर रह जाती हैं। स्वयं सहायता हेतु जन आंदोलन का रूप नहीं ले पाती हैं।
उन्होंने कहा कि सहकारिता नेतृत्व के राजनीतिकरण से आंदोलन के कल्याणकारी पहलू में गिरावट आई है। प्राय: सहकारी संस्थाओं को राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन या वोट बैंक समझा जाता है, जिससे बहुत बार सदस्यों के आर्थिक हित को नुकसान पहुंचता है।
शुक्रवार को सिविल लाइंस स्थित वसंतराव देशपांडे सभागृह में नागपुर नागरिक सहकारी बैंक की 55वीं वर्षगांठ के उद्घाटन अवसर पर उपराष्ट्रपति बोल रहे थे।
श्री अंसारी ने आगे कहा कि प्राथमिक कृषि ऋण संस्थाओं (पीएसीएस) का छोटा आकार, संसाधनों की कमी और कम भागीदारी रही है, जो उनके माध्यम से नकद प्रवाह की कार्यक्षमता और मात्रा के लिए एक बड़ा अवरोध है। अत: अपेक्षाकृत लघु प्राथमिक संस्थाओं का बड़ी संस्थाओं में समायोजन और पुनर्गठन किए जाने की जरूरत है। वे अधिक संसाधन जुटा सकेंगी और उनकी उपस्थिति और अधिक सशक्त होगी।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि शासन में सुधार करने के लिए पेशेवर प्रबंधन का अभाव रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक के नियम के बावजूद बहुत कम राज्य ऋण बैंकों ने पेशेकर निदेशकों की नियुक्ति की है। निकाय के पास निर्णय लेने की स्वायतता होनी चाहिए।
श्री अंसारी ने कहा कि सहकारी आंदोलन की क्षेत्रीय तीव्रता में अंतरों को देखते हुए स्पष्ट होता है कि सहकारी संस्थाओं ने उन्हीं क्षेत्रों में बेहतर काम किया है, जिनमें भूमि सुधार में अपेक्षाकृत अधिक सफलता मिली है।
सौजन्य : दैनिक भास्कर