सहकार भारती के अध्यक्ष ज्योतिंद्र मेहता ने पिछले सप्ताह मंगलौर स्थित कैंपको के मुख्यालय का दौरा किया और देखकर काफी उत्साहित थे। उन्होंने कहा कि जैसे अमूल ने दूध में ख्याति हासिल की है वैसे ही चॉकलेट की दुनिया में कैंपको ने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में अच्छा प्रदर्शन कर रही है।
सोशल मीडिया पर मेहता ने लिखा कि “कैंपको चॉकलेट फैक्टरी का दौरा किया। और सुपारी की खरीद इकाई का। कैंपको के अध्यक्ष श्री सतीशचंद्र मेरे साथ थे”।
सहकारी मंच पर कैंपको का आगमन दिलचस्प है। 1970 के दशक में जब सुपारी की कीमतों में भारी गिरावट आई तो इसके उत्पादकों काे काफी निराशा होना पड़ा था। संकट से उभारने के लिए कैंपको नामक कंपनी का गठन हुआ था।
कैंपको का गठन 1973 में उत्पादकों के लिए उद्धारकर्ता के रूप में हुआ था। यह एक बहु-राज्य सहकारी संस्था है- कर्नाटक और केरल राज्यों का संयुक्त उद्यम। मैंगलोर से करीब 50 किमी दूर पुत्तूर में चॉकलेट फैक्टरी के निर्माण के बाद सहकारी संस्था कैंपको से आधारित उत्पादों को बढ़ाने में सक्षम हो गया था।
जल्द ही, कैंपको ने अपना व्यापार सुपारी, कोको, रबड़ और अब काली मिर्च जैसे कई उत्पादों में शुरू किया है।
संस्था के कई सदस्य रबड़ का अधिक मात्रा में उत्पादन करते है तो कैंपको ने 2010-11 में रबड़ की खरीद में प्रवेश करने का फैसला लिया था। और दिसंबर 2016 में स्पाइस अनुसंधान कालीकट की भारतीय संस्थान के साथ पुत्तूर में काली मिर्च की खरीद शुरू करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है।
कई पुरस्कार जीतने के अलावा हाल ही में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमौया ने राज्य निर्यात उत्कृष्टता पुरस्कार प्रदान किया था।
हालांकि, 2014-15 में 40.57 करोड़ रूपये का लाभ आर्जित किया था वही 2015-16 में केवल 19.15 करोड़ रुपये किया था।