एनसीयूआई के अध्यक्ष डॉ चंद्रपाल सिंह और मुख्य कार्यकारी अधिकारी एन.सत्यनारयण ने हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह से मुलाकात की और एमएससीएस अधिनियम 2002 में कुछ प्रावधानों के विरुद्ध अपनी राय जाहिर की। यह मामला 2010 से लटका हुआ है।
मंत्री के अलावा, बैंठक में मंत्रालय के कई शीर्ष अधिकारियों ने भी भाग लिया, सूत्र ने बताया।
विधेयक में प्रस्तावित संशोधनों को संयुक्त संसदीय समिति को समीक्षा के लिए भेजा गया था और समिति के समक्ष कई सहकारी नेताओं ने अपनी-अपनी राय भी रखी थी। हालांकि, आगामी बजट में संशोधन के पास होने की कम अटकलें लगाई जा रही है लेकिन सहकारी नेता आखिरी वक्त तक प्रयास करना चाहते हैं।
97वां संवैधानिक संशोधन कहता है कि देश के नागरिक को सहकारी संस्था का गठन करने का मूल अधिकार है और इसके साथ तालमेल बिठाने के लिए एमएससीएस अधिनियम 2002 में संशोधन करने की आवश्यकता है।
कई अन्य विषयों के अलावा, शिक्षा कोष को एनसीयूआई के पास रखने की सिफारिश का मुद्दा अहम है। भारतीय सहकारिता से बातचीत में एनसीयूआई सीई ने कहा कि “यह कदम एनसीयूआई के शीर्ष पर होने के उद्देश्य को खत्म करेगा”।
देश के सहकारी आंदोलन को मजबूत बनाने के उद्देश्य से एनसीयूआई की कल्पना की गई थी। इसका लक्ष्य हर साल हजारों लोगों को सहकारी सिद्दांतों के बारे में प्रशिक्षित करना होता है। यह स्वाभाविक है कि शिक्षा निधि को शीर्ष संस्था के पास होना चाहिए; आखिरकार यह समिति द्वारा नियंत्रित होती है जिसमें मंत्रालय के अधिकारी भी शामिल है, संत्यनारायण ने रेखांकित किया।
सहकारी संस्थाओं को कंपनियों में परिवर्तित करने के मुद्दे पर एनसीयूआई के उच्च अधिकारियों ने प्रकाश डाला। जानकार सूत्रों का कहना है कि एनडीए सरकार ने इस प्रावधान को हटा दिया है। सहकार भारती ने इसके खिलाफ आवाज उठाई थी।
एनसीयूआई द्वारा तीसरा मुद्दा शेयर पूंजी की वापसी बाजार मूल्य पर नहीं बल्कि शेयर मूल्य से जुड़ा हुआ था।
इससे पहले सहकार भारती संरक्षक सतीश मराठे ने प्रस्तावित संशोधन में कई प्रावधानों के विरोध में मंत्री को पत्र भी लिखा था।