भारतीय सहकारिता महाराष्ट्र स्थित जलगांव जनता सहकारी बैंक द्वारा संचालित एसएचजी की एक कहानी पेश कर रही है जो इस क्षेत्र में 80 प्रतिशत से अधिक महिलाओं के जीवन बदले जाने की आकर्षक कहानी है। इस प्रंशसनीय पहल का श्रेय श्रीमती शोभा दे पाटिल को जाता है जो 1994 में बैंक में निदेशक के रूप में शामिल हुई थी और उनकी पहल पर ही विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेता ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं के जीवन को बदलने में दिलचस्पी दिखाने लगे।
वर्तमान में, बैंक लगभग 3500 स्व-सहायता समूहों का संचालन कर रहा है जिनमें 60,000 से अधिक महिला सक्रिय हैं। “हम महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण दे रहे हैं जिसमें पापड़, तरल साबुन, मसाला, चिप्स इत्यादि बनाने के तरीके शामिल हैं। ये महिलाएं अपने द्वारा बनाए गए उत्पादों को जलगांव जनता सहकारी बैंक सेल्फ हेल्प ग्रुप के ब्रांड नाम से बेचती हैं। इस पहल से महिलाओं को प्रति माह 5-6 हजार कमाने का अवसर मिल रहा है”, उन्होंने गर्व से कहा।
“जहां कुछ करने की इच्छा हो, वहां रास्ता अपने आप निकल जाता है और यह उदाहरण उन महिलाओं पर लागू होता है जिनके पास खुद को बदलने की क्षमता है। लेकिन इस विचार को प्रसारित करने और लाभकारी गतिविधियों में महिलाओं को अधिक से अधिक शामिल करने की आवश्यकता है”, पाटिल ने कहा। उन्होंने दावा किया कि इस प्रयास से जलगांव जिले के 80 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों को कवर किया जा चुका है।
“इस बीच, हम 100 एसएचजी को एक साथ जोड़कर एक छोटे उद्योग को स्थापित करने की योजना बना रहे हैं और उन्हें एक छत के नीचे एक साथ काम करने का मौका दिया जाएगा”, पाटिल ने कहा।
बैंक उन्हें अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए मंच प्रदान कर रहा है। इन्हें महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शनियां लगाकर दिखाया जाता हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि सहकारी संस्थाओं और सहकारी समितियों द्वारा चलाए जा रहे स्व सहायता समूह विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के जीवन में परिवर्तन करने में गेम चेंजर बन रहे हैं।
भारतीय सहकारिता से बातचीत में श्रीमती पाटिल ने कहा कि, “ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा करने के बाद मुझे स्थिति काफी भयानक लगी, मैंने देखा कि महिलाओं को अपना जीवन चलाने में काफी मुश्किल हो रही थी। तब मैंने सोचा कि क्या हम सहकारी मॉडल के माध्यम से इनके लिए कुछ कर सकते हैं और इस दिशा में हमने चार से पांच महिलाओं का एक समूह बनाया और उन्हें कुछ काम करने के लिए प्रोत्साहित किया।
यह नाबार्ड का प्रशिक्षण था जिसने श्रीमती पाटिल के परिप्रेक्ष्य को बदल दिया। “2001 में, मैं नाबार्ड द्वारा आयोजित एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के लिए कर्नाटक गई थी जो बहुत जानकारीपूर्ण था और इस प्रशिक्षण से मुझे बड़ा लाभ मिला, पाटिल ने बिना संकोच कबूल किया।”
एक अनुमान के अनुसार, देश में विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 2 लाख स्व-सहायता समूह सक्रिय हैं जो समाज के गरीब वर्ग की सहायता करते हैं।