एनसीसीटी को सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था एनसीयूआई से अलग करने से जुड़ा मामला बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के लिए आया था और कोर्ट ने इस मामले को 6 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया है।
भारतीय सहकारिता को पता चला कि मामला सुनवाई के लिए दोपहर तीन बजे आया जब एनसीयूआई के वकील कृष्णन दयाल और भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने अपना-अपना पक्ष रखा।
एनसीयूआई वकील ने अपनी बातों को बड़ी बारीकी से समझाया और कहा कि सरकार के इस कदम से देश की शीर्ष सहकारी संस्था कमजोर होगी। उन्होंने एनसीयूआई के उप-नियमों का भी उद्धरण दिया और सरकार के कदम की व्यर्थता के बारे में अदालत को मनाने की कोशिश की।
बेंच ने सरकारी वकील से जवाब देने के कहा, जिसके लिए उन्होंने वक्त मांगा। 6 सितंबर का समय देते हुए कोर्ट ने सरकारी वकील को जोर देकर कहा कि तर्क लंबा नहीं होना चाहिए। वकील को एक-दो पृष्ठों में ही जवाब देने को कहा गया।
बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट की नई इमारत का भी उद्घाटन किया जाना था जिसमें न्यायाधीश को जाना था और यह भी एक कारण था कि एनसीसीटी-एनसीयूआई मामले पर लंबी बहस नहीं हो पाई और कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को तय किया।
इस मौके पर एनसीयूआई की तरफ से संस्था के उपाध्यक्ष बिजेन्द्र सिंह और एनसीयूआई सीई एन सत्यनारयण मौजूद थे। मंत्रालय की उप-निदेशक कामना प्रसाद ने सरकार का प्रतिनिधित्व किया। दिलचस्प बात यह है कि सुनवाई के दौरान अदालत में एनसीसीटी के सचिव मोहन मिश्रा और एनसीसीटी के एक और अधिकारी भी उपस्थित थे।
पाठकों को याद होगा कि एनसीसीटी को एनसीयूआई से अलग करने पर सहकारी नेताओं ने सरकार की जमकर आलोचन की थी और कहा था कि सरकार सहकारी आंदोलन को कमजोर करने में तुली हुई है। एनसीयूआई को पिछले साल 6 सितंबर को कृषि मंत्रालय से एक पत्र प्राप्त हुआ था जिसका शीर्षक था कि “नेशनल काउंसिल कॉपरेटिव ट्रेनिंग को स्वतंत्र और व्यावसायिक इकाई बनाने के लिए नेशनल कॉपरेटिव यूनियन ऑफ इंडिया से अलग करना”।
पत्र में कहा गया है कि एनसीयूआई के नियंत्रण के कारण, एनसीसीटी अपने लक्ष्य को हासिल करने में असफल रही है और इसकी वजह से प्रमुख संस्थान वामनिकॉम की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा है। हालांकि एनसीयूआई ने इन आरोपों का खंडन किया है।