देश की शीर्ष सहकारी संस्था एनसीयूआई के कर्मचारी संकट के दौर से गुजर रहे हैं। कर्मचारियों को अपना भविष्य असुरक्षित लग रहा है। सूत्रों की माने तो यह स्थिति एनसीयूआई और कृषि मंत्रालय के बीच चल रही लड़ाई के चलते उत्पन्न हुआ है।
“पहले एनसीसीटी को शीर्ष सहकारी संस्था से अलग करने की खबर और फिर बाद में मंत्रालय द्वारा कॉपरेटिव एजूकेशन फंड के चेक पर इसके एक नुमाइंदा के हस्ताक्षर का मामला- इन सभी घटनाओं ने भयानक स्थिति पैदा कर दी है”, एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा।
मानो इतना सब पर्याप्त न हो, शीर्ष सहकारी संस्था ने इसी दौरान मौजूदा सेवा-नियमों में संशोधन करने पर काम करना शुरू कर दिया है जिससे कर्मचारियों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।
हाल ही में, एनसीयूआई की कर्मचारी संघ ने एक बैठक का आयोजन किया जिसमे दो प्रस्तावों को पारित किया। मांग की गई कि एनसीयूआई की मौजूदा नियमों में कोई संशोधन नहीं किया जाना चाहिए और कर्मचारियों के भविष्य को प्रभावित करने वाले किसी भी संशोधन पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।
“यदि किसी सेवा-नियम की समीक्षा बेहद जरूरी हो तो इस सूरत में एनसीयूआई कर्मचारी वेलफेयर एसोसिएशन के साथ इस पर चर्चा की जानी चाहिए। साथ ही कार्यकारी समिति द्वारा नामित एक प्रतिनिधि इसमें अवश्य होना चाहिए,” प्रस्ताव में आगे कहा गया।
कर्मचारी संघ ने सरकार और एनसीयूआई के बीच चल रही लड़ाई पर विचार-विमर्श किया और एनसीयूआई के कर्ता-धर्ता गण से अाग्रह किया कि मंत्रालय के साथ संबंध मजबूत करने का प्रयास किया जाए ताकि एनसीयूआई की मौजूदा स्थिति को बरकरार रखा जा सके।
हालांकि, कर्मचारी संघ का साफ मानना है कि एनसीयूआई ही केवल कॉपरेटिव एजूकेशन फंड की संरक्षक हो सकती है क्योंकि यह देश के सहकारी आंदोलन की शीर्ष निकाय है। लेकिन सरकार से वित्तीय सहायता लेने के लिए यह आवश्यक है कि भारत सरकार द्वारा निर्धारित नियमों और शर्तों का पालन किया जाए, उन्होंने तर्क दिया।
“इन मुद्दों को हल करने के लिए हमने पिछले महीने मुख्य कार्यकारी से भी मुलाकात की थी लेकिन हमारी समस्याओं का आज तक हल नहीं किया गया है”, उन्होंने दुखी भाव से कहा।
कर्मचारियों की ये भी शिकायत है कि एक तरफ तो एनसीयूआई वित्तीय संकट से जूझ रही है और कर्मचारियों को उनका वास्तविक हिस्सा नहीं मिल पा रहा है वहीं दूसरी तरफ 13 पदों के लिए एनसीयूआई में भर्ती चल रही है। एक अनुमान के मुताबिक, नई नियुक्ति से शीर्ष निकाय पर प्रति माह 4 लाख रुपये का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा।