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सहकारिता से जुड़े: चंद्रपाल का सीमांत किसानों को आवाहन

दिल्ली में देश की सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था नेशनल कॉपरेटिव यूनियन ऑफ इंडिया ने अपने मुख्यालय में अपनी वार्षिक आम बैठक का आयोजन किया। इस मौके पर संस्था के अध्यक्ष ने छोटे और सीमांत किसानों से एकजुट होकर सहकारी संस्था स्थापित करने की बात कही।

ऐसा देखा गया है कि जहां सहकारी आंदोलन मजबूत है वहां किसान आत्महत्या की घटनाएं कम हुई है। उन्होंने महसूस किया कि देश में खेती के लिए घटती भूमि की समस्या सहकारिता के माध्यम से हल हो सकती है।

“आज 85 प्रतिशत किसानों के पास 1-1.5 हेक्टेयर तक की भूमि है। एक अध्ययन के मुताबिक, 2030 तक यह आंकड़े 91 प्रतिशत तक पहुंचने की संभावना है। कमजोर किसान मंहगी प्रौद्योगिकियों को खरीद नहीं पाएंगे। लेकिन जब वे एकजुट होकर सहकारी संस्था स्थापित करेंगे तो वे बड़े पैमाने पर इन सभी समस्याओं से निजात पा सकेंगे”, चंद्रपाल ने कहा।

एनसीयूआई अध्यक्ष ने कहा कि देश में सहकारी आंदोलन का इतिहास 114 साल पुराना है और हमने सहकारिता के माध्यम से बहुत कुछ हासिल किया है। उन्होंने अपने दावे को साबित करने के लिए हरित क्रांति, श्वेत क्रांति का जिक्र किया। “लेकिन अफसोस की बात यह है कि सहकारिता का सरकारी योजना में नामो-निशान नहीं है”, उन्होंने दुखी भाव से कहा।

एनसीयूआई अध्यक्ष ने देश के सहकारी कानून में भी संशोधन करने की मांग की और कहा कि इसे बदलते परिदृश्य के हिसाब से बनाया जाए। “सहकारी संस्थाओं को मीडिया का सहारा लेना चाहिए ताकि सहकारी समितियों द्वारा किए गए अच्छे कार्य को मीडिया की सुर्खियों में जगह मिल सके”, उन्होंने जोर देकर कहा।

अपने उद्बोधन में, यादव ने सहकारिता के माध्यम से महिला सशक्तिकरण, युवाओं को सहकारी आंदोलन से जोड़ना, किसानों की आय दोगुनी करने में सहकारी संस्थाओं की भूमिका समेत अन्य मुद्दों पर प्रकाश डाला।

उन्होंने एनसीसीटी को एनसीयूआई से अलग करने की भी बात की और कहा कि सहकारी प्रशिक्षण एनसीयूआई की आत्मा है। “फिलहाल मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में है और इसलिए हम इस पर अधिक बात नहीं करेंगे”।

यादव ने एनसीयूआई द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा एनसीयूआई ने वित्त वर्ष 2016-17 में 75 प्रोग्राम किये और वित्त वर्ष 2017-18 में 165 प्रोग्राम किये है और 5800 सहकारी नेताओं और करीब 2000 महिलाओं को प्रशिक्षित किया था। एनसीयूआई ने विश्वविद्यालयों में सहकारी शिक्षा प्रारंभ करने के लिए शैक्षिक संस्थानों के साथ कई एमओयू पर भी हस्ताक्षर किये हैं, उन्होंने रेखांकित किया।

इस मौके पर कई प्रतिनिधियों ने भी अपनी-अपनी बात रखी। एक महिला प्रतिनिधि सुरेख खोत ने एनसीयूआई बोर्ड पर अधिक से अधिक महिला प्रतिनिधि को शामिल करने की बात कही। जबकि अशोक दाबास ने एनसीसीटी को एनसीयूआई से अलग करने के मामले पर बोलते हुए कहा कि इसे कोर्ट के बाहर ही हल किया जाना चाहिए। जहां बिहार स्टेट कॉपरेटिव बैंक के अध्यक्ष रमेश चौबे ने कहा कि 25 करोड़ रुपये वैद्यनाथन समिति की अनुशंसा के हिसाब से बैंको को दिया जाना चाहिए तो शैहर्द कॉपरेटिव फेडरेशन के अध्यक्ष कृष्णा रेड्डी ने इस तथ्य पर जोर दिया कि 7 लाख सहकारी समितियां होने वे बावजूद भी सहकारिता सरकारी गलियारों में अपनी बात को रखने में असफल है। इस एजीएम में देश के विभिन्न हिस्सों से आए लगभग 250 प्रतिनिधि मौजूद थे।

गवर्निंग काउंसिल के सदस्यों के अलावा, इस मौके पर कई विशेष अतिथि भी थे जिनमें गुजरात से नरहरि अमीन और बिहार से सुनील कुमार सिंह का नाम शामिल है। संस्था के उपाध्यक्ष जी.एच.अमीन ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।

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