हालांकि, पीयूष गोयल के कार्यभार संभालने के बाद, सहकार भारती ने उन्हें अपनी मांगों की सूची भेजने में कोई देरी नहीं की। जेटली की तुलना में सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के मुद्दों पर अधिक सहानुभूति रखने वाले गोयल चुनावी वर्ष में मोदी सरकार के अंतिम बजट को अंतिम रूप देने में व्यस्त हैं।राष्ट्रपति, महासचिव और संरक्षक द्वारा हस्ताक्षरित, सहकार भारती पत्र के अनुसार सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के अधिकतर सदस्य मुख्य रूप से समाज के निम्न और मध्यम वर्ग से आते हैं और इसके चलते इस क्षेत्र पर नरमी बरती जाने की आवश्यकता है।
देश में करीब 8.50 लाख सहकारी समितियां है जिससे 25 करोड़ लोग सीधे जुड़े हुए हैं। शहरी सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के मामले में लगभग 1550 अर्बन कॉपरेटिव बैंक है और 95 प्रतिशत ऋण खातों में औसत टिकट का आकार लगभग 5 लाख रुपये है।
पत्र में एनडीए सरकार की ओर से चुनाव के दौरान की गई घोषणाओं का भी जिक्र किया गया है और मांग की कि धारा 80 (पी) के फायदों की बहाली की जाए ताकि जिसका सीधा लाभ इन 1550 बैंकों को मिल सके। दुर्भाग्य से, 2006 में, सरकार ने आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80 (पी) प्रावधान को वापस ले लिया था और यूसीबी को आयकर के अंतर्गत लाया गया।
पत्र में कहा गया कि छोटे यूसीबी जिनकी केवल एक शाखा है उन्हें छूट दी जानी चाहिए। इनकी संख्या लगभग 700 है। एमएसएमई क्षेत्र के साथ समानता की मांग करते हुए पत्र में सरकार से सभी अनुसूचित यूसीबी पर 25% की दर से आयकर लगाने की मांग की गई है।
हम जानते है कि सभी वित्त मंत्री अनिवार्य रूप से समान होते हैे लेकिन फिर भी हमें उम्मीद है कि इस बजट से सहकारी क्षेत्र को राहत मिलने के असार है, वरिष्ठ नेता ज्योतिंद्र मेहता ने कहा। सहकार भारती के दूसरे दिग्गज सतीश मराठे ने कहा कि, “आइए हम देखते हैं, मुझे उम्मीद है कि वे इस बार हमारी बात सुनी जाएगी”।
ज्योतिंद्र मेहता जो वर्तमान में सहकार भारती के संरक्षक है , ने कहा कि अगर केवल अनुसूचित बैंकों पर कर लगाये जाते हैं तो अधिकांश सहकारी बैंक कर के दायरे से बाहर हो जाएंगे।