भारतीय सहकारिता को भेजे गए एक विस्तृत पत्र में रेपको बैंक के अधिकारियों ने बताया कि बैंक सरकार की उदासीनता का कैसे शिकार हो रहा है। केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के कारण बैंक पर आफत का पहाड़ टूट पड़ा है।
केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश में कहा है कि रेपको बैंक- मतदान नहीं करने वाले सदस्यों से जमा स्वीकार करने में अयोग्य है क्योंकि बैंक बहु-राज्य सहकारी समितियों अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत है। अध्यादेश ने संगठन को दुविधा में डाल दिया है।
सूत्रों का कहना है कि बैंक केवल वोटिंग सदस्यों से जमा स्वीकार कर सकता है। आपको बता दें कि रेपको बैंक अपने करीब 10 लाख ऐसे सदस्यों के समर्थन से फल-फूल रहा है जिनके पास मतदान का अधिकार नहीं है।
रेपको बैंक के अधिकारियों ने कहा कि “हमने गृह मंत्रालय और केंद्रीय मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग को कानून के दायरे से छूट देने के लिए पत्र लिखा है।
पाठकों को याद होगा कि हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसाइटीज़ एक्ट के प्रावधानों के अनुसार रेप्को बैंक में निदेशकों को नामित करने की मांग करने वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया है।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि बैंक ने एमएससीए अधिनियम 2002 को दरकिनार कर अपने उप-नियमों को बनाया था। बैंक की बोर्ड में नामित सदस्य की संख्या से संबंधित मुद्दा है।
याचिकाकर्ताओं ने पिछले साल अक्टूबर में केंद्रीय रजिस्ट्रार से संपर्क किया था, लेकिन जब कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली तो उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
न्यायाधीश ने केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय और सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार को चार सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया था।