पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने मुकेश और राहुल मोदी की अंतरिम जमानत के आदेश को तत्काल निलंबित करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि दोनों को गिरफ्तार माना जाएगा और उनकी अंतरिम जमानत की अवधि के दौरान उन्हें दो पुलिस अधिकारी एस्कॉर्ट करेंगे।
मुकेश मोदी की मां की गंभीर हालत को देखते हुए दोनों को जमानत दी गई थी। हालांकि, केंद्र सरकार ने उसके झूठ बोलने के आधार पर जमानत रद्द करने की मांग की है। स्मरण हो कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 1 अप्रैल को सरेंडर करने के लिए कहा था और पिछले गुरुवार यानि 19 अप्रैल को उन्हें 15 दिन की अंतरिम जमानत दी गई।
अपने आवेदन में अंतरिम जमानत रद्द करने की मांग करते हुए, सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस ने अदालत को बताया कि आरोपी झूठ बोल रहा है क्योंकि उसकी मां अब भर्ती नहीं है; वह 13 मार्च से 18 मार्च तक अस्पताल में थी। एसएफआईओ को डर है कि वे देश से भाग सकते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, एसएफआईओ ने यह भी सोचा कि यद्यपि अभियुक्तों की नियमित याचिका 20 अप्रैल को गुड़गांव अदालत के समक्ष स्थगित करने के लिए लंबित थी, लेकिन वे गुरुवार को हाई कोर्ट चले गए।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश और राहुल मोदी को जमानत देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। शीर्ष अदालत ने दोनों को एक अप्रैल तक सरेंडर करने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने हरियाणा में दायर एक मामले पर निर्णय लेने में दिल्ली उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार की वैधता का मुद्दा भी उठाया था।
पाठकों को याद होगा कि मुकेश और राहुल को 10 दिसंबर 2018 को सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) द्वारा गिरफ्तार किया गया था और 20 दिसंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय ने जमानत दी थी।
हालांकि, जमानत पर बाहर, राहुल मोदी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जिसमें कहा गया कि आदर्श क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी ने कोलकाता स्थित रियल एस्टेट डीलर के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जो सोसाइटी को उसके द्वारा वित्तपोषित सभी संपत्तियों को बेचने की स्वीकृति देगा। इससे सोसाइटी को 9,711 करोड़ रुपये मिलेंगे। हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा संबोधित एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में सौदे का विवरण सामने आया था।
याद हो कि मोदियों पर सहकारिता के नाम पर 20 लाख से अधिक जमाकर्ताओं को धोखा देने का आरोप है। आदर्श क्रेडिट के गिरफ्तार चेयरमैन मुकेश और उनके परिवार के सदस्यों पर आरोप है कि उन्होंने पोंजी स्कीम चलाई थी और कई फर्जी कंपनियां बनाई थीं, जिनमें उन्होंने 8400 करोड़ रुपये की हेरा-फेरी की।