जैसे ही ओवर रामचंद्रन को अपने प्रतिद्वंद्वी के नामांकन पत्र के खारिज होने की खबर मिली तो उन्होंने अपनी सफलता पर भारतीय सहकारिता को धन्यवाद दिया। बता दे कि रामचंद्रन इफको की बोर्ड में निर्विरोध निदेशक चुने गए हैं। भारतीय सहकारित से बातचीत में वह काफी खुश दिखाई दिए और अपनी जीत का श्रेय ‘भारतीय सहकारिता’ को दिया।
उनकी भावनात्मक प्रतिक्रियाएं हमें अतीत में ले गयी। जब पांच साल पहले 2014 में भारतीय सहकारिता को कोयंबटूर (तमिलनाडु) में रहने वाले रामचंद्रन का मेल प्राप्त हुआ था। इंटरनेट देखने के दौरान वे ‘भारतीय सहकारिता’ के सम्पर्क में आए थे और इफको चुनाव से संबंधित समाचारों को देखा था। सहकारी-चुनाव लड़ने का उनका विचार यहीं से शुरू हुआ।
चुंकि हम पाठकों के प्रश्नों का उत्तर देने में हमेशा तत्पर रहते हैं, हमने उन्हें इफको से संबंधित व्यक्तियों का विवरण दिया जो उनके लिए काफी मददगार साबित हुआ था।
यह बात डॉ. जी.एन. सक्सेना के समय की है। वर्तमान एमडी डॉ. यू.एस. अवस्थी मामले के प्रमुख थे और सहकारी आंदोलन में युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए सदा उत्सुक रहते थे। अवस्थी और सक्सेना की जोड़ी ने रामचंद्रन की महत्वाकांक्षा को पूरा करने में मदद की और वे 2014 में आरजीबी के सदस्य बन गए।
उन्हें आगे प्रोत्साहित करने के लिए डॉ. अवस्थी ने उन्हें प्राकृतिक आपदाओं के लिए प्रतिक्रिया तैयार करने के लिए गठित समितियों में से एक में जगह दी। रामचंद्रन इन पांच वर्षों में ऐसे कई संकटों के दौरान सक्रिय रहे, जिसमें नेपाल में आए भूकंप की घटना भी शामिल थी।
उन्होंने कहा कि, “आज मैं मीडिया और विशेष रूप से ‘भारतीय सहकारिता’ के कारण इफको की बोर्ड में निदेशक चुना गया हूं। भारतीय सहकारिता देश के कोने-कोने में सहकारी समाचारों का प्रचार-प्रसार करती है और सहकारिता मॉडल में रुचि रखने वाले युवाओं को किस्मत आजमाने में मदद करती है। मैं इफको बोर्ड के लिए भारतीय सहकारिता’ का उपहार हूँ”।
रामचंद्रन की सफलता से प्रभावित होकर, वर्तमान मुख्य चुनाव अधिकारी तरुण भार्गव ने भी सूची को अंतिम रूप देते हुए बिना समय गंवाये हमें सूचित किया। “आपका उम्मीदवार जीता गया है”, भार्गव ने भारतीय सहकारिता को बताया।