सहकारी नेताओं ने पार्टी लाइन से हटकर गिरीश कर्नाड को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने फिल्म “मंथन” में सहकारिता के संघर्ष को खूबसूरती से दर्शाया था। श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित यह फिल्म वर्गीज कुरियन द्वारा दी गई कहानी पर आधारित थी और इसमें सहकारी आंदोलन के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत किया गया था।
कन्नड़ लेखन और रंगमंच के दिग्गज अभिनेता – निर्देशक लेखक गिरीश कर्नाड, का सोमवार को बेंगलुरु में सुबह लगभग 8:30 बजे निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे।
उनके परिवार की इच्छा थी कि श्री कर्नाड के लिए किसी भी प्रकार का कोई राजकीय कार्यक्रम या समारोह न हो। कर्नाटक सरकार ने तीन दिन का राजकीय शोक और सोमवार को सभी सरकारी कार्यालयों/संस्थानों के लिए छुट्टी घोषित की थी।
इफको ने भी दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि दी। कर्नाड ने 2013 में इफको के 26वें जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल व्याख्यान” को संबोधित किया था।
श्री कर्नाड के योगदान को याद करते हुए इफको के एमडी डॉ. यू एस अवस्थी ने ट्वीट किया, ‘कला और संस्कृति की दुनिया के प्रसिद्ध अभिनेता और पद्म पुरस्कार विजेता गिरीश कर्नाड के निधन से एक बड़ा झटका लगा है। फिल्म “मंथन” में उनकी भूमिका को कोई नहीं भूल सकता जो सहकारी समितियों के विषय पर आधारित थी। इफको परिवार ने श्री कर्नाड को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की”.
कर्नाड को उनकी बौद्धिक कुशलता के लिए भी जाना जाता है। वह रोड्स स्कॉलर रह चुके थे। कथन की उनकी शैली और सहकारिता विषय पर उनके विचारों का पटल बहुत रोचक होता था।
चकाचौंध की दुनिया का एक व्यक्तित्व कर्नाड अपने व्याख्यान में सिनेमा और सहकारिता के बीच संबंध स्थापित करने में सक्षम थे, जिसका पहला कदम उन्होंने ‘मंथन’ नाम की फिल्म बना कर उठाया था। उन्होंने कहा था, यहां तक कि संवाद और स्क्रीनप्ले सहयोग से उपजे हैं क्योंकि हमने एक ऐसे विचार को आकार देने के लिए संघर्ष किया, जिसमें एक कमजोर कथानक और एक अदम्य कहानी थी”।
फिल्म मंथन में गिरीश कर्नाड एक सच्चे तेज-तर्रार डेयरी सहकारी नेता बने थे जिन्होंने निहित स्वार्थ को चुनौती दी, जिसमें नसीरुद्दीन शाह की मुख्य भूमिका थी। कर्नाड ने महान निर्देशक श्याम बेनेगल की उम्मीदों को पूरा किया और फिल्म डेयरी सहकारी आंदोलन के साथ हिट हो गई।