झारखंड राज्य सहकारी बैंक में अवैध नियुक्तियों और वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त होने के आरोप में झारखंड के सहकारिता विभाग ने डिप्टी रजिस्ट्रार जयदेव प्रसाद सिंह सहित तीन अधिकारियों को निलंबित कर दिया है।
राज्य सहकारी बैंक में महाप्रबंधक एवं डिप्टी रजिस्ट्रार जयदेव प्रसाद सिंह वित्तीय अनियमितताओं में दोषी पाया गया है।
जांच के दौरान, यह पता चला है कि बैंक ने फर्जी ऋण वितरित किये हैं और ऋण की वसूली का कोई प्रयास नहीं किया गया। अफसरों ने किताबों के साथ छेड़छाड़ भी की है। यह घोटाला करीब 54 करोड़ रुपये का है ।
जांच के बाद, जामताड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक, देवघर के एमडी रामकुमार प्रसाद को भी निलंबित किया गया है। प्रसाद पर देवघर में अपनी पोस्टिंग के दौरान फर्जी ऋण के वितरण का आरोप लगा है।
जांच समिति की सलाह पर विभाग ने चाईबासा के जिला सहकारी अधिकारी लाल मनोज शाहदेव को भी निलंबित कर दिया है जो चाईबासा में बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय में तैनात थे।
जांच रिपोर्ट के अनुसार, विभाग ने आलोक और सात अन्य कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। फिलहाल कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है।
“भारतीयसहकारिता.कॉम” का बैंक के चेयरमैन अभय कांत प्रसाद से संपर्क नहीं हो सका। बुजुर्ग सहकारी कर्मी अभय कांत प्रसाद को उनकी साफ-सुथरी छवि के कारण उच्च सम्मान दिया जाता है। चीजों की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि यह आश्चर्य की बात है कि घोटालेबाज प्रसाद की नाक के नीचे अपनी योजना में सफल हुए हैं।
विभाग ने तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी ब्रजेश्वर नाथ, प्रोजेक्ट मैनेजर परदेश पाठक, चाईबासा स्थित ‘ गुमला सिमडेगा सहकारी बैंक’ से रामवृक्ष प्रसाद और शाखा प्रबंधक मनोज गुप्ता, सुनील कुमार सत्पथी सरायकला के तत्कालीन शाखा प्रबंधक और मदन लाल प्रजापति के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज करने के आदेश दिये गए हैं।
जांच के लिए गठित समिति ने 250 पेज की रिपोर्ट तैयार की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्टेट रजिस्ट्रार सुचित्रा सिन्हा के ट्रांसफर की तैयारी हो रही है जिन्होंने नए जीएम सुशील कुमार की मदद से इस मामले में सख्त कार्रवाई करघोटाले को उजागर किया है।
पाठकों को याद होगा कि बैंक के महाप्रबंधक का कार्यभार संभालने के बाद, सुशील कुमार ने कई धोखाधड़ी को सूचीबद्ध किया था।उन्होंने सहकारी समितियों के राज्य रजिस्ट्रार का ध्यान आकर्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर अनियमितताओं को उनके संज्ञान में लाया और मामले की जांच का आग्रह किया।
उनके ही आग्रह पर सरकार ने रजिस्ट्रार की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन किया था, जिसने फर्जी खातों के माध्यम से ऋणों को वितरित करने सहित विभिन्न अनियमितताओं का खुलासा किया था।
विस्तृत जांच के बाद, इस मामले की सीबीआई जांच की भी सिफारिश की गई थी।