पटना उच्च न्यायालय ने पैक्स का सदस्य बनाने के लिए ऑनलाइन प्रणाली की तुलना में पुरानी प्रणाली का ज्यादा विश्वसनीय माना है। गौरतलब है कि वर्तमान में नीतीश सिंह सरकार द्वारा ऑनलाइन पैक्स का सदस्य बनाने की वकालत की जा रही थी।
मंगलवार को पटना उच्च न्यायालय ने प्राथमिक कृषि सहकारी समिति (पैक्स) द्वारा ऑनलाइन सदस्य बनाने पर रोक लगा दी। कोर्ट ने राज्य रजिस्ट्रार को पुराने पैटर्न में मतदाता सूची बनाने का निर्देश दिया है।
बिस्कोमान के चेयरमैन सुनील सिंह के नेतृत्व में राज्य के सहकारिता संचालकों ने अदालत के आदेश का समर्थन करते हुए कहा, “यह हमारी सामूहिक जीत है और यह आदेश सरकार को भविष्य में भी सहकारी आंदोलन के लिए हानिकारक कानूनों को लागू करने से रोकेगा।”
सुनील ने आगे कहा, “जब पैक्स के 30 वर्ष से अधिक आयु के सदस्य भी पूर्व में सरकार की योजनाओं से लाभान्वित नहीं हुए हैं, तो उन्हें फर्जी तरीके से ऑनलाइन सदस्य बनाने की क्या जरूरत थी।”
अदालत ने राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग को दो सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर करने का भी निर्देश दिया है। मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी।
अदालत ने कहा, “पैक्स के ऑनलाइन सदस्य अब मतदाता नहीं होंगे और न ही चुनाव लड़ पाएंगे। इसके अलावा, अदालत ने पैक्स चुनाव की घोषणा को अवैध घोषित कर दिया है।
माननीय न्यायाधीश राजीव रंजन ने एक पैक्स के अध्यक्ष बाबू बंधु और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया।
वरिष्ठ अधिवक्ता यदुवंश गिरि ने कहा कि राज्य सरकार लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत चुने गए पैक्स प्रतिनिधियों को नहीं चाहती है और सहकारी अधिनियम में ऑनलाइन मतदाता सूची तैयार करने का कोई प्रावधान नहीं है।
पाठकों को याद होगा कि राज्य में 8430 पैक्स समितियां हैं, जिनका चुनाव होना है।
बता दें कि बिहार सरकार ने पैक्स के चुनाव में बोर्ड को चुनने लिए पुरानी प्रणाली को समाप्त कर दिया है और नई प्रणाली लागू की।
इससे पहले, राज्य चुनाव आयोग ने छह चरणों में पीएसीसीएस के चुनाव की घोषणा की थी। चुनाव कार्यक्रमों के अनुसार, नामांकन 22 अगस्त से शुरू होना था। 14 सितंबर को मतदान होना था।
इस बीच, मंगलवार को चंपानगर पंचायत के दर्जनो लोगों ने ब्लॉक मुख्यालय पर विरोध प्रदर्शन किया जिसमें आरोप लगाया गया कि चुनाव की मतदाता सूची में हेरफेर किया गया है।