मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने सहकारी समितियों को अपनी निजी जागीर समझ लिया है, जिसके चलते सहकारी नेता गुस्साए हुए हैं। वहीं विपक्षी दल भाजपा ने आरोप लगाया कि सरकार सहकारी समितियों का चुनाव कराने की जगह, अपने लोगों को संस्थाओं की कमान सौंपने में जुटी है।
मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि मध्य प्रदेश में जिला सहकारी बैंकों का चुनाव नहीं होगा और गैर-सरकारी प्रशासकों की नियुक्ति की तैयारी चल रही है।
प्रशासकों की नियुक्ति के लिए शीर्ष बैंक जिलों के सहकारी नेताओं की सूची तैयार करेगा जिसके लिए नाम स्थानीय विधायकों से मांगे गए हैं।
उल्लेखनीय है कि सहकारी समितियों का चुनाव पिछले दो वर्षों से लंबित हैं और भाजपा ने इस मुद्दे पर कमलनाथ सरकार की जमकर आलोचना की है।
इस बीच, भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार सहकारी बैंकों में अपने लोगों को मनमाने ढंग से नियुक्त कर रही है जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
अग्रवाल ने अपने ट्वीट में लिखा, “मध्य प्रदेश में सहकारी क्षेत्र फिर से बर्बादी के रास्ते पर। कांग्रेस अपने लोगों को सहकारी बैंकों में बैठा रही है। बीजेपी सतर्क है और उन्हें नहीं छोड़ेगी”।
सरकार 38 डीसीसीबी में से तीस बैंकों में गैर-सरकारी प्रशासकों को नियुक्त करने की प्रक्रिया में है। इस संबंध में सहकारिता मंत्री डॉ गोविंद सिंह और एपेक्स बैंक के प्रशासक अशोक सिंह की मुलाकात हुई है।
इससे पहले, गैर सरकारी प्रशासकों को चार डीसीसीबी में नियुक्त किया गया था जिसमें छिंदवाड़ा, बैतूल, भिंड और बालाघाट शामिल थे। हालांकि मामला कोर्ट में होने के कारण पन्ना, छतरपुर और सतना के डीसीसीबी में नियुक्तियां नहीं हो सकीं।
बताया जा रहा है कि कांग्रेस सरकार अपने लोगों को अन्य सहकारी समितियों में और साथ ही जिला स्तर पर प्रवेश करने की योजना बना रही है। राज्य में 4800 से अधिक पैक्स हैं और सरकार इन समितियों में भी प्रशासक नियुक्त करने की योजना बना रही है।
रीवा, सतना, दतिया और ग्वालियर डीसीसीबी घाटे में हैं और सरकार उनकी मदद करने की कोशिश कर रही है।