सहकारिता आंदोलन को कितनी गंभीरता से हमारे नेता और हमारे पड़ोसी देशों के नेता लेते हैं – यह 2 जुलाई को सम्पन्न हुए अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस पर स्पष्ट रूप से देखा गया.
जब भारत में भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ द्वारा एक सादा कार्यक्रम आयोजित किया गया, वहां मौजूद थे अकेले सहकारी नेता NCUI के अध्यक्ष चन्द्र पाल सिंह यादव. वह एक अरब आबादी वाले देश में अकेले सहकारिता का ध्वज धारण किए हुए थे.
पड़ोसी देश श्रीलंका में राष्ट्रपति महिन्दा राजपक्षे ने उत्तर पश्चिमी प्रांत की राजधानी कुरुनेगला के वेलगेदरा स्टेडियम में आयोजित समारोह की मुख्य अतिथि के रूप में शोभा बढ़ाई जहां और नेताओं ने उत्साह के साथ भाग लिया.
भारत के मामले में प्रधानमंत्री को तो छोड़िए, कृषि मंत्री, जिनका राजनीतिक दबदबा सहकारी समितियों के आसपास घूमता है, ने शायद ही यह पता लगाने की कोशिश की कि ऐसे महत्वपूर्ण दिवस पर क्या हो रहा है.
सरकार के सबसे बड़े अधिकारी जो शायद अनिच्छा से समारोह में गए, वह थे एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी जो वर्तमान में केन्द्रीय पंजीयक के रूप में तैनात हैं. वह सभी वक्ताओं के बाद आए और काफी पहले चले गए.
Indiancooperative.com को मालूम हुआ है कि भूत काल में कई महत्वपूर्ण सहकारिता घटनाओं पर केंद्रीय मंत्रियों को आमंत्रित करने के NCUI के कई प्रयासों को सफलता नहीं मिली.
अब श्रीलंका की बात करते है. राष्ट्रपति राजपक्षे ने कहा कि सहकारी समितियों ने खुदरा विपणन के क्षेत्र में श्रीलंका को महान सेवा प्रदान की है, खास कर उचित मूल्य पर आवश्यक खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति कर के, जो कठिन समय के दौरान एक सराहनीय कदम है.
राजपक्षे के शब्दों को देखें. क्या हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसी तरह की बात नहीं कही थी? उन्होंने सहकारी आंदोलन में एक ताकत देखी जो देश के कोने-कोने में प्रवेश कर सकती है अपने अंदर से परिवर्तन शुरू कर सकती है.
इस अवसर पर श्रीलंका में सहकारिता आंदोलन पर ग्यारह पुस्तकों का विमोचन हुआ.