भारत सरकार ने दावा किया है कि राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (एनपीसी) द्वारा किए गए एक अध्ययन से यह साबित हुआ है कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड के कारण रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में 8-10% की गिरावट आई है और उत्पादकता में 5–6% की वृद्धि हुई है।
इफको जैसी बड़ी उर्वरक सहकारी संस्थाएं ‘सेव द सॉइल’ अभियान के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य को बचाने पर जोर दे रही हैं। पाठकों को याद होगा कि मोदी सरकार ने वित्त वर्ष 2014-15 में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का शुभारंभ किया था। “मिट्टी के स्वास्थ्य को बचाने के उद्देश्य से शुरू किए गए अभियान का परिणाम आना शुरू हो गया है”, सरकार ने दावा किया।
केंद्र सरकार की “मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना चरण-I” (वर्ष 2015-2017) के तहत 10.74 करोड़ कार्ड वितरित किए गए, जबकि चरण- II के तहत वर्ष 2017-19 की अवधि के दौरान 11.69 करोड़ कार्ड दिए गए हैं।
इस योजना के तहत मृदा स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिए राज्यों को 429 स्थैतिक प्रयोगशालाएँ, 102 नई मोबाइल प्रयोगशालाएँ, 8,752 मिनी प्रयोगशालाएँ, 1,562 ग्राम-स्तरीय प्रयोगशालाएँ और 800 विद्यमान प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ करने की स्वीकृति दी गई है।
इस योजना में प्रावधान है कि हर दो साल में एक बार राज्य सरकारों द्वारा मिट्टी की संरचना का विश्लेषण किया जाएगा ताकि मिट्टी के पोषक तत्वों में सुधार के लिए उपचारात्मक कदम उठाए जा सकें। किसान अपनी मिट्टी के नमूनों को ट्रैक कर सकते हैं और अपने मृदा स्वास्थ्य कार्ड की रिपोर्ट भी प्राप्त कर सकते हैं।
“मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना” किसानों के लिए वरदान साबित हुई है, जबकि यह युवा कृषकों के लिए रोजगार भी पैदा कर रही है। इस योजना के तहत 40 वर्ष तक के गाँव के युवा और किसान मृदा स्वास्थ्य प्रयोगशालाएँ स्थापित करने और परीक्षण करने के पात्र हैं। एक प्रयोगशाला की लागत पाँच लाख रुपये तक होती है, जिसका 75% केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जा सकता है। स्वयं सहायता समूहों, किसानों की सहकारी समितियों, किसान समूहों और कृषि उत्पादन संगठनों पर भी यही प्रावधान लागू होते हैं।
“इच्छुक किसान युवक और संगठन अपने प्रस्ताव उप निदेशक (कृषि)/संयुक्त सचिव (कृषि) या संबंधित जिलों के कार्यालयों में प्रस्तुत कर सकते हैं। विस्तृत जानकारी के लिए वेबसाइट – agricoop.nic.in या soilhealth.dac.gov.in पर जाएँ या किसान कॉल सेंटर नं. 1800-180-1551 पर डायल करें।
सरकार के सूत्रों का यह भी दावा है कि चालू वित्त वर्ष में एक पायलट प्रोजेक्ट- “मॉडल गांवों का विकास” कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसके तहत किसानों के साथ साझेदारी में खेती योग्य मिट्टी के नमूने लेना और परीक्षण को प्रोत्साहित किया जा रहा है। परियोजना के तहत मिट्टी के नमूनों के एकत्रीकरण और प्रत्येक कृषि जोत के विश्लेषण के लिए एक आदर्श ग्राम का चयन किया गया है। योजना के भाग के रूप में वर्ष 2019-20 के दौरान 13.53 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए गए हैं।