ऐसा लगता है कि कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत सहकारिता विभाग देश में व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की नीतियों के अनुरूप काम नहीं कर रहा है। विभाग की ओर से सहकारी संस्थाओं को मल्टी स्टेट का दर्जा देने में कमी से यह बात स्पष्ट हो रही है।
देश में कई सहकारी समितियां हैं जिन्होंने मल्टी-स्टेट का दर्जा पाने के लिये आवेदन किया है, लेकिन कुछ ही संस्थाओं को दर्जा मिला पाया है। एक बहु-राज्य सहकारी संस्था अपने कारोबार का विस्तार अन्य राज्यों में भी कर सकता है।
मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज़ की वेबसाइट ने दावा किया कि 2018 में केवल आठ सहकारी समितियों को मल्टी स्टेट का दर्जा मिला और 2019 में केवल चार सोसाइटीज़ को ही पंजीकरण प्रमाणपत्र मिल सका है।
2019 में मल्टी-स्टेट पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करने वाली सहकारी समितियों में उत्तर प्रदेश स्थित “ग्रीन अर्थ एग्रो कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड”, हरियाणा स्थित “पानीपत अर्बन कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड”, कर्नाटक स्थित “सुभीक्षा ऑर्गेनिक फार्मर्स मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी” और तेलंगाना स्थित “गायत्री सहकारी अर्बन बैंक लिमिटेड” शामिल हैं।
जिन सहकारी समितियों को 2018 में मल्टी स्टेट स्टेटस मिला था, वे हैं “श्री बाल्की मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड”, “मां वैष्णो एग्रो मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड”, “ग्लोबल विलेज हाउसिंग कोऑपरेटिव लिमिटेड” (देव लोक हाउसिंग कोऑपरेटिव लिमिटेड), “रिजर्व बैंक स्टाफ और ऑफिसर्स कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी लिमिटेड”, “सन्मति सहकारी बैंक लिमिटेड”, “सूरत पीपुल्स को-ऑप बैंक लिमिटेड, “भारती कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड” और “बिहार सहकारी फेडरेशन लिमिटेड”।
यह पता चला है कि केंद्रीय रजिस्ट्रार से पूर्व अनुमोदन के बिना, सहकारी समितियों को अन्य राज्यों में अपने व्यवसाय का विस्तार करने की अनुमति नहीं है।
इससे पहले, यह महसूस किया गया था कि पूर्व कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के समय में अन्य राज्यों में व्यवसाय का विस्तार करने के लिए सहकारी समितियों को अधिक से अधिक लाइसेंस मिलना आसान नहीं था। यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगा कि नरेंद्र सिंह तोमर के शासनकाल में भी स्थिति बदली नहीं है।
कई अवसरों पर सहकारी नेताओं ने विभाग द्वारा किए जा रहे काम की धीमी गति के खिलाफ बात की है। नेफकॉब के वरिष्ठ निदेशक एच के पाटिल ने एक बार कहा था कि यह सह-संचालकों की गरिमा के अनुरूप नहीं है कि वे बाबुओं के सामने खड़े हों और उनसे अपने हक की माँग करें। लेकिन नौकरशाह इस बात पर गौर करने को तैयार नहीं है!