इन दिनों श्रम सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था- नेशनल लेबर कोऑपरेटिव्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एनएलसीएफ़) में उथल–पुथल का माहौल बना हुआ है। संस्था के निदेशक अशोक डबास ने संस्था की एमडी प्रतिभा आहूजा को एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने आर्बिट्रेटर की ओर से दिनांक 06-02-2020 को पारित एक आदेश के मद्देनजर एमडी से बोर्ड की बैठक बुलाने का आग्रह किया है।
पाठकों को याद होगा कि एक आदेश में आर्बिट्रेटर दीपा शर्मा ने संस्था की अध्यक्ष सहित बोर्ड के छह सदस्यों को अयोग्य ठहराया है।
पत्र में वर्ष- 2020 की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च) के लिए एनएलसीएफ़ बोर्ड की 136वीं बैठक बुलाने का अनुरोध किया गया है। ऐसा माना जाता है कि एमडी संजीव कुशालकर के दबाव पर बैठक को जानबूझकर स्थगित किया जा रहा है।
एमएससीएस अधिनियम, 2002 की धारा 50 की उप-धारा (1), जिसमें विहित है कि “बहु-राज्य सहकारी समिति के अध्यक्ष के कहने पर मुख्य कार्यकारी बोर्ड की बैठकें बुलाएगा”, की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए, डबास ने उनसे जल्द से जल्द बैठक बुलाने का अनुरोध किया।
“भारतीयसहकारिता” से बात करते हुए डबास ने कहा कि इस संदर्भ में संस्था के उपाध्यक्ष अमित बजाज एमडी को पहले ही पत्र लिख चुके हैं और उन्हें जल्द से जल्द बोर्ड की बैठक बुलाने का अनुरोध किया है।
डबास के पत्र के अनुसार, “इन परिस्थितियों में मैं बोर्ड की बैठक के आयोजन में देरी को समझ नहीं पा रहा हूँ। ऐसा प्रतीत होता है कि आप बोर्ड के कुछ सदस्यों के दवाब में काम कर रही हैं।
डबास ने अपने पत्र में यह भी कहा है कि महासंघ (एनएलसीएफ) पर अपरोक्ष पकड़ रखने के एकमात्र उद्देश्य से एनएलसीएफ के उप-नियमों का उल्लंघन कर अन्य समितियों को सदस्य बनाया गया है। ऐसे लोगों ने फेडरेशन को केवल हानि पहुँचाई है।
उन्होंने एमडी को सरकार के शेयर की याद दिलाई और मुद्दे को सरकार के समक्ष उठाने की धमकी दी। संस्था में सरकार का पैसा एनसीडीसी के माध्यम से लगा हुआ है अत: सरकार एक शेयरधारक है। साथ ही, भारत सरकार एनएलसीएफ़ को नियमित रूप से अनुदान भी दे रही है।
एमडी को डबास याद दिलाते हैं कि सरकार ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से रियायती दरों पर प्लॉट (जिस पर कार्यालय बना है) खरीदने के लिए एनएलसीएफ़ को अनुदान दिया था जो भारत भर में श्रम सहकारी समितियों को विकसित कर सके।
पत्र में आगे कहा गया है, “लेकिन दुर्भाग्यवश, गत वर्षों के दौरान फेडरेशन पर पकड़ बनाए रखने के एकमात्र उद्देश्य से इसकी सदस्यता अवैध रूप से एक विशेष क्षेत्र की समितियों को दी गई है, जबकि देश के अन्य क्षेत्रों की समितियों के लिए एनएलसीएफ़ की सदस्यता को उस हावी समूह द्वारा हतोत्साहित किया गया है”।
डबास ने आगे लिखा कि संरक्षक होने और दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों तथा महासंघ के प्रशासन के लिए जिम्मेदार होने के नाते, एमडी को कर्तव्यों को पारदर्शी और स्वतंत्र तरीके से निभाने की आवश्यकता है।
हालांकि इस मामले पर संजीव कुशालकर से प्रतिक्रिया पाने में “भारतीयसहकारिता” के प्रयास विफल रहे।