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बिहार सहकारी सम्मेलन का लक्ष्य –सहकारी नेताओं की एकता : सुनील

गत 24 फरवरी को संपन्न तीन दिवसीय बिहार सहकारी सम्मेलन की थकान से उभरने के बाद परिणाम पर चर्चा करने के लिए बिस्कोमान के अध्यक्ष डॉ सुनील सिंह ने “भारतीयसहकारिता” को फोन किया। बता दे कि इस सम्मेलन के उद्घाटन के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने यात्रा-कार्यक्रम को आखिरी क्षण में बदला था।

बिस्कोमान अध्यक्ष पत्रकार की दृष्टि से जानना चाह रहे थे कि आखिर इस सहकारी सम्मेलन की उपलब्धि क्या रही। इस बीच सफल आयोजन के मद्देनजर बिस्कोमान के अध्यक्ष की लोकप्रियता आसमान छू रही थी।

इस संवाददाता के कुछ कहने से पहले सुनील स्वयं बोल पड़े। आपने देखा कि इस सम्मेलन में अलग-अलग राजनीतिक दलों से संबद्ध सहकारी नेता एक मंच पर एक साथ देखे गए और एक संयुक्त सहकारी मोर्चे का गठन आपने आप हो गया। सहकारी नेताओं के बीच पहले से चले आ रहे मतभेदों का जिक्र करते हुए बिस्कोमान के चेयरमैन ने कहा कि “आप देख लीजिए अशोक डबास भी इस सम्मेलन में शिरकत कर रहे हैं”।

पाठकों को याद होगा कि अशोक डबास ने एनसीयूआई के निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन के मुद्दे पर आर्बिट्रेशन केस दायर किया है, जिससे शीर्ष निकाय के चुनाव में अनिश्चितता पैदा हुई है। पूर्व में गवार्निंग काउंसिल के सदस्य रहे – डबास अपने अंतिम प्रयास में बोर्ड में प्रवेश करने में असफल रहे थे।

डबास ने एक तरह से सीधे तौर पर चंद्र पाल और बिजेन्द्र सिंह की जोड़ी को चुनौती दी है, लेकिन बिहार सहकारी सम्मेलन के मौके पर डबास इन दोनों नेताओं के साथ लंच और डिनर करते हुए देखे गये। सुनील सिंह ने इस संवाददाता से कहा “बर्फ पिघल रही है और सहकारी समितियों की बहु-प्रतीक्षित एकता आकार ले रही है।”

बात को आगे बढ़ाते हुये सुनील ने कहा, “यह साबित करने की मेरी दिली इच्छा थी कि सहकारी भाईचारा राजनीतिक संबद्धता से अधिक मजबूत होता है।” सुनील ने अपनी बात साबित करने के लिए इस सम्मेलन में सहकार भारती के संरक्षक ज्योतिंद्र मेहता, अशोक ठाकुर और अरुण तोमर जैसे भाजपा से जुड़े सहकारी नेताओं की उपस्थिति का भी हवाला दिया।

“भारतीयसहकारिता” इस बात की गवाह है कि बिस्कोमान चेयरमैन ने इस आयोजन मे ज्योतिंद्र मेहता की उपस्थिति के लिये जोरदार प्रयास किया। मेहता ने उसी दिन गुजरात में यूसीबी की राज्य स्तरीय बैठक बुलाई थी और उनके लिए पटना में उपस्थित होना मुश्किल था। परंतु सुनील के आत्मीय आग्रह को वे नहीं टाल सके और उन्हें पटना आना पड़ा।

एक ही मंच पर इफको और कृभको का आना भी कोई छोटी उपलब्धि नहीं है, नाम न छापने की शर्त पर सुनील के एक सहयोगी ने बताया कि हाल तक ये दोनों सहकारी संस्था एक-दूसरे के सदस्य को लेने को तैयार नहीं थे”।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी एक प्रकार से यह बयान देकर सुनील का समर्थन किया था कि सहकारिता का कोई राजनीतिक रंग नहीं होता है। “एक सहकारी नेता पहले एक सहकारी नेता है, बाद में एक राजनीतिक कार्यकर्ता”, कुमार ने जोर देकर कहा। इस वक्तव्य से नीतीश ने सुनील को भी एक तरह से सुरक्षा प्रदान की क्योंकि सुनील का लालू से गहरा रिश्ता जगजाहिर है।

कार्यक्रम के दौरान सहकारी नेताओं के बीच निकटता के अलावा, बापू सभागार में लोगों की अभूतपूर्व उपस्थिती कुछ ऐसी थी जिससे राज्य के मुख्यमंत्री सहित सभी अचंबित हो गये। 24 फरवरी को सीएम सुबह 11 बजे आए थे, जबकि सुबह 9 बजे ही सभागार खचाखच भर गया था।

सुनील ने कहा, ‘यह मत भूलिए कि “बिहार बंद” के आह्वान के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हुए’। उन्होंने कहा कि सहकारिता के शीर्ष नेता और इसके आम कार्यकर्ता (पैक्स सदस्य) के बीच सीधा संवाद स्थापित करने का उनका लक्ष्य ईश्वर की कृपा से सफल हुआ।

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