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यूसीबी पर आरबीआई का नियंत्रण पर सहकार भारती का वेबिनार

अर्बन को-ऑपरेटिव बैंकों को आरबीआई की सीधी निगरानी में लाने वाले अध्यादेश के मद्देनजर सहकार भारती ने मंगलवार को एक वेबिनार का आयोजन किया। इस वेबिनार का उद्देश्य सहकारी नेताओं के मन में छिपी शंकाओं को दूर करना था।

सहकार भारती से जुड़े वरिष्ठ सहकारी नेताओं के एक पैनल ने अध्यादेश से जुड़ी कई बारीकियों पर प्रकाश डाला। इस मौके पर वक्ताओं ने जोर दिया कि नये अध्यादेश से बैंकों को पेशेवर बनने में मदद मिलेगी और कैपिटल एकत्र करने के लिये रास्ते भी खुलेंगे।

वक्ताओं में आरबीआई सेंट्रल बोर्ड के निदेशक सतीश मराठे; नेफकॉब के अध्यक्ष ज्योतिंद्र मेहता, जलगांव जनता सहकारी बैंक के अध्यक्ष प्रो अनिल राव सहित अन्य शामिल थे। इस अवसर पर यूसीबी के निदेशक, अध्यक्ष और अन्य प्रतिनिधि कई सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से जुड़े थे।

इस अवसर पर वक्ताओं ने महसूस किया कि भारतीय रिज़र्व बैंक को सहकारी भावना को समझना चाहिए और अब भारत भर में यूसीबी के लिए नवीनतम तकनीक के साथ खुद को उन्नत करने और अपनी गतिविधि में व्यावसायिकता की शुरुआत करने का समय है। इसके अलावा, वक्ताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि आरबीआई या केंद्र सरकार का सहकारी बैंकों के निजीकरण का कोई इरादा नहीं है।

अपने विचारों को साझा करते हुए ज्योतिंद्र मेहता ने कहा, “अध्यादेश की घोषणा के साथ ही यूसीबी के प्रतिनिधियों के दिमाग में कई सवाल खड़े हो गए हैं जिन्हें बिना समय गंवाए स्पष्ट करने की जरूरत है। सहकारी बैंकों के लिए पूंजी जुटाने का प्रावधान है। अब यूसीबी को अपनी मौजूदा तकनीक को अपग्रेड करना चाहिए और ग्राहकों की संतुष्टि सुनिश्चित करनी चाहिए।

“आरबीआई को सहकारी भावना को समझना चाहिए और इस ढांचे के तहत विनियमित करना चाहिए। हम सभी को एक साथ कंधे से कंधा मिलकर काम करना होगा। यूसीबी के लिए अमब्रेला संगठन की स्थापना के बाद सहकारी बैंकों की शिकायतों को संबोधित करना और उन्हें जल्द हल करना आसान हो जाएगा”, मेहता ने आगे कहा।

इस अवसर पर एक अन्य वक्ता आरबीआई सेंट्रल बोर्ड के निदेशक सतीश मराठे ने आरबीआई के पूर्व गवर्नर और तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ अपनी बैठक को याद किया, जहां दोनों ने सरकार या आरबीआई द्वारा सहकारी बैंकों का निजीकरण करने से इनकार किया था। यहां तक कि एक संसदीय समिति की बैठक में पटेल ने शहरी सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के विकास के लिए पूर्ण विनियमित शक्ति देने का आह्वान किया था।

“हमें विश्वास है कि आरबीआई या केंद्र सरकार “एक व्यक्ति एक मत” के मूल सिद्धांत को नहीं बदलेगी। आने वाले दिनों में यूसीबी साइबर सुरक्षा, बुनियादी ढांचे में सुधार और अन्य के लिए पूंजी जुटा सकती है। हमने कई यूसीबी को आरबीआई के निर्धारित मानदंडों के तहत काम नहीं करते देखा है और 70 से अधिक यूसीबी हैं जो ‘डी‘ श्रेणी में हैं और लगभग 200 बैंक ‘सी‘ श्रेणी में हैं”, मराठे ने रेखांकित किया।

“जलगांव जनता सहकारी बैंक” के अध्यक्ष अनिल राव ने कहा, “केवल सहकारी भावना को ध्यान में रखते हुए, आरबीआई को शहरी सहकारी बैंकों का विनियमन या पर्यवेक्षण करना चाहिए। उदारीकरण के बाद हमने देखा है कि यूसीबी पर यूबीआई का नियंत्रण कुछ वर्षों तक सख्त नहीं था। 10 प्रतिशत से अधिक यूसीबी खराब स्थिति में हैं लेकिन 90 प्रतिशत यूसीबी सराहनीय काम कर रहे हैं। मेरा सुझाव है कि आरबीआई और यूसीबी के बीच आपसी समझ सुनिश्चित करने के लिए एक औपचारिक तंत्र की आवश्यकता है”, उन्होंने अपना सम्बोधन समाप्त करते हुए कहा।

आरबीआई के सेवानिवृत्त सीजीएम – प्रेम अरोड़ा ने शहरी सहकारी बैंकिंग क्षेत्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर जोर दिया। उन्होंने मालेगाम और आर गांधी समिति की सिफारिशों और बैंकिंग विनियमन अधिनियम की कई धाराओं पर भी प्रकाश डाला।

वेबिनार की मेजबानी सहकार भारती के राष्ट्रीय महासचिव उदय जोशी ने की।

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