मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में यूरिया की कमी से जुड़ी खबरें लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं जबकि बिहार में बिस्कोमान किसानों को ब्लैक में यूरिया खरीदने से बचा रही है। इस बात का दावा संस्था के अध्यक्ष सुनील कुमार सिंह कर रहे हैं।
सुनील का कहना है कि, बिस्कोमान बिहार में कुल खपत का केवल 10 प्रतिशत ही यूरिया बेचता है, लेकिन वह किसानों को 265 रुपये प्रति बैग के हिसाब से यूरिया बेचकर अपनी पहचान बनाये हुये है, जो अन्य यूरिया विक्रेताओं के लिये एक सबक है”।
इफको और इसके एमडी का धन्यवाद करते हुए, सुनील ने कहा कि अगर इफको को केंद्र द्वारा राज्य में और अधिक उर्वरक बेचने की अनुमति दी जाती तो आज कुछ अलग ही दृश्य होता। सरकार कंपनियों को कोटा आवंटित करती है।
सुनील ने कहा, ”आज इफको मोटे तौर पर राज्य में लगभग 9 लाख मीट्रिक टन की बिक्री करता है और किसानों को इसके ब्रांड-वैल्यू पर पूरा भरोसा है। इसलिए केंद्र उर्वरक कंपनी इफको को राज्य में ज्यादा से ज्यादा उर्वरक बेचने की मंजूरी दे जो राज्य के किसानों के लिए एक वरदान साबित होगा”।
उन्होंने आगे कहा, जो किसान अपने शरीर के ऊपरी भाग को ढंकने के लिए 100 रुपये का बानियान खरीदने के लिए सक्षम नहीं हैं, उसे कालाबाजारी के कारण यूरिया के प्रत्येक बैग पर अतिरिक्त 150-200 रूपये का भुगतान करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। सुनील ने बताया कि किस तरह इफको-बिस्कोमान ने एक साथ मिलकर मूल्य को स्थिर कर व्यवस्था को बदला है।
इस बीच, पिछले साल की तरह इस वर्ष भी 265 रुपये प्रति बैग के हिसाब से किसानों को यूरिया बेचकर बिस्कोमान ने पुनः मीडिया की सुर्खियाँ बटोरना शुरू कर दिया है, जिसके चलते किसान राज्य भर में फैले बिस्कोमान केंद्रों पर जाने के लिए मजबूर हैं।
बिस्कोमान के 175 केंद्र और इफको के लगभग 50 बिक्री केंद्र सक्रिय रूप से किसानों के लिए यूरिया की कीमत को स्थिर कर रहे हैं। सुनील ने कहा कि उनके पास 13 लाख किसानों की सूची है जिन्होंने पिछले साल पीओएस मशीनों के माध्यम से उर्वरक खरीदा है।
खबरें हैं कि किसान सामाजिक दूरी और अन्य मानदंडों का पालन नहीं कर रहे हैं और यूरिया खरीदने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा में केंद्रों पर बड़ी कतारों में खड़े रहते हैं। किसानों को अपनी बारी के लिए सुबह से ही कतार में खड़ा होना पड़ता है।
सिंह ने आगे कहा कि जहां यूरिया खुले बाजार में 400-500 रुपये प्रति बैग की दर से बेचा जा रहा है, वहीं बिस्कोमॉन ने यह सुनिश्चित किया है कि उसके कर्मचारी-सदस्यों द्वारा एक पैसा भी अतिरिक्त न लिया जाए। कई बार पुलिस की मदद के बिना किसानों को यूरिया बेचना मुश्किल हो जाता है क्योंकि बड़ी संख्या में किसान लंबी कतारों में खड़े होते हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बिस्कोमान जरूरत के समय लोगों की मदद कर सहकारी समितियों की छवि को बढ़ाने में सफल रहा है – चाहे छठ के समय कश्मीरी सेब की जरूरत रही हो या प्याज की आपूर्ति, बिस्कोमान हमेशा सामाजिक सेवा करने में सक्रिय रही है, एक वरिष्ठ सहकारी नेता ने चुटकी लेते हुये कहा।