शहरी सहकारी बैंकों की शीर्ष संस्था नेफकॉब के उपाध्यक्ष विद्याधर अनास्कर के जन्मदिन के मौके पर, ज्योतिंद्र मेहता के साथ एक तस्वीर सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है जो साफ दर्शा रहा है कि दोनों की दोस्ती कितनी गहरी है। लेकिन अनास्कर और मेहता में बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अध्यादेश को लेकर काफी मतभेद चल रहा है।
नेफकॉब के अध्यक्ष मेहता और बोर्ड के अन्य सदस्यों को एक पत्र लिखकर अनास्कर ने अध्यादेश पर नेफकॉब के रुख को जनाने के लिए बोर्ड की बैठक बुलाने की मांग की है। अनास्कर ने कहा कि अध्यादेश का विषय बहुत संवेदनशील है और सहकारी बैंकिंग क्षेत्र पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव है। बता दें कि पत्र की एक प्रति भारतीय सहकारिता के पास भी है।
“नेफकॉब के अध्यक्ष के रूप में आप विभिन्न वेबिनारों, टॉक-शो, निजी संस्थानों द्वारा आयोजित फ़ोरम में नेफकॉब के अन्य निदेशकों की राय एवं सुझावों को जाने बिना ही अध्यादेश के पक्ष में समर्थन दे रहे हैं”, अनास्कर ने आरोप लगाते हुए कहा।
“इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक व्यक्ति के रूप में आपके पास अपने व्यक्तिगत विचार को व्यक्त करने का अधिकार और स्वतंत्रता है, लेकिन अध्यक्ष के रूप में आपको अध्यादेश के प्रावधानों पर पूरे सेक्टर की ओर से, रिज़र्व बैंक द्वारा गठित विभिन्न समितियों की सिफारिशों के आधार पर, नेफकॉब की भूमिका भी समझानी होगी। यद्यपि उन सिफ़ारिशों को शहरी सहकारी क्षेत्र और उनके संघों/महासंघों द्वारा समय-समय पर खारिज किया गया था”, अनास्कर ने याद दिलाते हुए कहा।
उन्होंने पत्र में आगे लिखा कि, “नेफकॉब के अध्यक्ष के रूप में, आपसे उम्मीद है कि प्रस्तावित बिल के विभिन्न प्रावधानों के प्रति नेफकॉब की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए निदेशक मंडल की बैठक तत्काल बुलाई जाए। हालांकि, मार्च 2020 के बाद से और 27 जून, 2020 को विधेयक को अध्यादेश में रूपांतरण के बाद भी, आपने नेफकॉब की भूमिका और रुख को जानने के लिए अभी तक कोई बोर्ड की बैठक नहीं बुलाई है”, अनास्कर ने आगे कहा।
उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों का समर्थन करने के कारण कॉसमॉस बैंक के ग्रुप अध्यक्ष और नेफकॉब के पूर्व अध्यक्ष मुकुंद अभ्यंकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात की मेहता को याद दिलाते हुए, अनास्कर ने कहा, “अब मैं अध्यादेश के पक्ष में आपके अलग-अलग रुख से अत्यंत हैरान हूँ, जिनके प्रावधान उच्चाधिकार प्राप्त समिति सिफारिशों को कवर करते हैं और सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के निजीकरण के लिए मजबूर करते हैं।
अनास्कर ने चेतावनी दी कि “1993 से रिज़र्व बैंक विभिन्न समितियों की स्थापना और इन समितियों की सिफारिशों को लागू करने के लिए समय-समय पर परिपत्र जारी करके यूसीबी को निजी क्षेत्र में परिवर्तित करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन सफल नहीं हो सका।”
अब उक्त अध्यादेश के प्रावधानों का अनुचित लाभ उठाते हुए, गांधी समिति और अन्य समितियों की सिफारिशों को आरबीआई द्वारा थोपा जा रहा है। चूंकि यूसीबी के निजीकरण का रिज़र्व बैंक का यह परोक्ष उद्देश्य काफी स्पष्ट है, इसलिए यह बताना दुर्भाग्यपूर्ण है कि आपने इस संबंध में अभी तक कोई ठोस रुख नहीं अपनाया है।