एनसीयूआई की गवर्निंग काउंसिल की बैठक पिछले सप्ताह हुई, जिसमें 23 नवंबर 2020 को चुनाव कराने का निर्णय लिया गया।
शायद चुनाव से पहले जीसी सदस्यों की यह आखिरी बैठक थी। जीसी की यह महत्वपूर्ण बैठक दो वरिष्ठ नेताओं डॉ चन्द्र पाल सिंह यादव और दिलीप संघानी की केन्द्रीय राज्य मंत्री परषोत्तम रूपाला के साथ भेंट की पृष्ठभूमि में हुई, सूत्रों ने बताया।
चूंकि सेंट्रल रजिस्ट्रार ने हाल ही में एजीएम आयोजित करने की समय-सीमा 31 दिसंबर तक बढ़ाई थी, इसलिए एनसीयूआई नेतृत्व का एक वर्ग 27-28 दिसंबर को चुनाव और एजीएम आयोजित करना चाहता था। बताया जा रहा है कि रूपाला के कहने पर जल्द से जल्द चुनाव कराने का निर्णय लिया गया है। इसके साथ ही वर्तमान अध्यक्ष चंद्र पाल ने 23 नवंबर को चुनाव कराने का विचार जीसी में रखा, जिस पर सभी सदस्य सहमत हुए।
इसके लिए एनसीयूआई को निर्धारित तिथि पर चुनाव कराने के लिए कई मोर्चों पर काम करना है। संस्था को 60 दिन पहले चुनाव की सूचना देनी होती है और रिटर्निंग अधिकारी की नियुक्ति के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी क्योंकि लंबे समय से शीर्ष निकाय के लिए यह चिंता का विषय बना हुआ है।
संस्था के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एन सत्यनारायण ने कहा, “हम रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त करने के लिए दिल्ली राज्य के कॉपरेटिव रजिस्ट्रार और जिला प्रशासन को पुनः एक पत्र लिखने वाले हैं। इससे पहले रजिस्ट्रार ने कोविड के मद्देनजर अधिकारी नियुक्त करने पर अपनी अनिच्छा व्यक्त की थी, जबकि जिला प्रशासन ने जवाब तक नहीं दिया।
“अगर हम सफल नहीं होते हैं, तो फिर से केंद्रीय रजिस्ट्रार से अनुरोध करेंगे कि या तो वह अपनी पसंद के अधिकारी को नियुक्त करें या एनसीयूआई बोर्ड को आरओ नियुक्त करने की अनुमति दें”, सत्यनारायण ने इस तथ्य को देखते हुए कहा कि इस बार रूपाला के हस्तक्षेप से फर्क पड़ सकता है।
हालांकि मतदाता सूची एनसीयूआई के अधिकारियों द्वारा तैयार की जाएगी, चुनाव अधिकारी सूची का निरीक्षण करेगा और सदस्यों को नामांकन के लिए आमंत्रित करेगा। इसके बाद नामांकन-पत्रों की स्क्रूटनी और योग्य उम्मीदवारों की अंतिम सूची प्रकाशित की जाएगी।
पाठकों को याद होगा कि एनसीयूआई बोर्ड में लगभग 16 सीटें हैं, जिन पर चुनाव होना हैं। लेकिन वास्तविकता में मुख्य लड़ाई चार सीटों के इर्द-गिर्द है जहाँ बहुत सारे मतदाता हैं और साथ ही कई प्रतियोगी भी हैं। आमतौर पर, राज्यों से लगभग 200 पात्र मतदाता हैं।
यह मल्टी स्टेट को-ऑप सोसायटी एक ऐसा निर्वाचन क्षेत्र है जिसमें भारी संख्या में मतदाता हैं। उत्तराखंड से प्रमोद कुमार सिंह पिछला चुनाव जीते थे, लेकिन वह इस बार भी भाग्यशाली होंगे यह कोई नहीं जानता।
शुगर को-ऑप्स, लेबर को-ऑप्स, फिशरीज को-ऑप्स और कई अन्य को-ऑप्स को दो निर्वाचन क्षेत्रों के साथ मिलाया गया है, जो उम्मीदवारों के लिए प्रचार कार्य को कठिन बनाएगा। सूत्र ने बताया कि लेबर और शुगर सहकारी समितियों के प्रतिनिधि एक-दूसरे को नहीं जानते हैं और सार्थक प्रचार करना काफी मुश्किल होगा।
एक अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वर्तमान अध्यक्ष डॉ चंद्र पाल और दो उपाध्यक्ष बिजेन्द्र सिंह एवं जीएच अमीन का चुनाव जीतना कोई मुश्किल नहीं है, जबकि वीपी सिंह के लिए यह उतना आसान नहीं होगा, खासकर अगर जीएच अमीन केंद्र-शासित प्रदेश से भी चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं।
एनएलसीएफ के निदेशक अशोक डबास को भी चुनाव जीतने के लिए काफी जद्दोजहद करनी होगी। हालांकि वह निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन के मुद्दे पर चुनाव याचिकाएं वापस लेने के एवज में अपने हक की मांग करेंगे। श्रम निर्वाचन क्षेत्र से डबास का जीतना काफी मुश्किल लग रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि वह एनसीयूआई के बोर्ड में शामिल होने के लिए निश्चित रूप से सरकार की शरण लेंगे।