एनसीयूआई के अध्यक्ष चंद्र पाल सिंह यादव ने पिछले सप्ताह राज्यसभा में शून्य काल के दौरान 97वें संविधान संशोधन अधिनियम का मुद्दा उठाया था। बता दें कि उक्त अधिनियम को अभी तक कानूनी उलझनों के कारण लागू नहीं किया गया है और इसे सहकारी समितियों के लिए फायदेमंद बताया जाता है।
राज्यों में सहकारी क्षेत्र में एकरूपता के लिए आवाज उठाते हुए, एनसीयूआई के अध्यक्ष ने 97वें संविधान संशोधन अधिनियम को लागू करने के लिए समाधान खोजने हेतु सदन के कार्यवाहक अध्यक्ष से आग्रह किया। यह मामला लगभग पिछले 10 वर्षों से लंबित है।
एनसीयूआई ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा, “इस मुद्दे पर यादव को पार्टी लाइन से हटकर अन्य सदन के सदस्यों से भी व्यापक समर्थन मिला। उन सभी ने महसूस किया कि सहकारी क्षेत्र को सुव्यवस्थित करने के लिए, इस ऐतिहासिक संशोधन अधिनियम को कानूनी दांव पेंच से निकालकर सभी राज्यों में लागू किया जाना चाहिए।
सहकारी नेताओं के एक वर्ग ने इसे लागू करने में देरी के लिए एनडीए सरकार को दोषी ठहराया है क्योंकि इसके प्रणेता एनसीपी चीफ शरद पवार थे। इस अधिनियम में सहकारी संस्थाओं को एक पारदर्शी उद्यम बनाने का अधिकार है, जिससे सहकारी संस्थाओं को समय-समय पर उनके ऊपर लगाए गए आरोप-प्रत्यारोप से मुक्त किया जा सके।
स्मरणीय है कि इस संशोधन अधिनियम, 2011 को दिनांक 12.01.2012 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी, जिसे 13.01.2012 को भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया।
बाद में, गुजरात उच्च न्यायालय ने 97वें संविधान संशोधन पर सवाल उठाया था। विशेषज्ञों का कहना है कि माननीय गुजरात उच्च न्यायालय ने इस अधिनियम पर न केवल प्रश्न उठाया था, बल्कि इसके महत्वपूर्ण तत्व को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने संविधान में जोड़े गए भाग IXB को असंवैधानिक करार दिया है। लेकिन यह अन्य राज्यों के लिए असंवैधानिक नहीं हो सकता है। अन्य किसी भी उच्च न्यायालय ने इस दृष्टिकोण पर सहमति नहीं व्यक्त की।
संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम 2011 ने भारतीय सहकारिता से संबंधित भारत के संविधान में एक साथ तीन संशोधन किए: 1. मौलिक अधिकारों में [भाग III]; राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों में [भाग IV]; और 3. संविधान में नया भाग ‘IXB-सहकारी समितियाँ’ सम्मिलित किया गया।
सहकारी समिति के निर्माण को नागरिकों के मौलिक अधिकार के रूप में मानते हुए, संसद ने एक अनुवर्ती कदम के रूप में एक नया निर्देश अनुच्छेद 43बी जोड़ा, जिसका शीर्षक है -“राज्य स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कामकाज, लोकतांत्रिक नियंत्रण और सहकारी समितियों के पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा”।
इसी धारणा पर आधारीत, “हिमाचल प्रदेश सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक, 2020” को हाल ही में राज्य विधान सभा में कई संशोधनों के साथ पारित किया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश पहला राज्य बन गया है, जहां 97वां संवैधानिक संशोधन, जो सहकारी समिति बनाने का अधिकार देता है, को लागू किया गया।