सहकारी नेताओं ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रूपाला से मुलाकात की। इस मौके पर नेताओं ने अन्य मुद्दों के अलावा एनसीयूआई की मतदाता सूची से नेफकॉब का नाम हटाने पर भी चर्चा की, सूत्रों ने कहा।
नेफकॉब का तर्क है कि को-ऑप एजुकेशन फंड में उच्चतम योगदानकर्ताओं में से एक होने के बावजूद भी शहरी सहकारी बैंकों की शीर्ष संस्था नेफकॉब का नाम मतदाता सूची से हटाया गया। इसको लेकर ‘संस्था’ ने केंद्रीय रजिस्ट्रार से शिकायत की थी।
सूत्रों ने बताया कि, यह बैठक मंत्रियों के कहने पर बुलाई गई थी, जो शीर्ष सहकारी संस्था एनसीयूआई में सुचारू रूप से चुनाव करना चाहते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि मंत्रियों ने नेफकॉब के मामले में एनसीयूआई के रुख पर सहमति जताई। पाठकों को याद होगा कि एनसीयूआई के कुछ नेताओं ने तर्क दिया था कि कैसे कोई भी केवल सहकारी शिक्षा कोष में धन का योगदान करके एनसीयूआई का मतदाता हो सकता है और गवर्निंग काउंसिल में सीट पा सकता है, सूत्रों ने बताया।
बताया जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि नेफकॉब योग्य नहीं है, क्योंकि एमएससीएस अधिनियम में निर्धारित शर्त के अनुसार, योगदान संस्था के लाभ से दिया जाना चाहिए। तोमर ने यह भी कहा कि नेफकॉब को यह प्रमाणित करना चाहिए कि योगदान लाभ से दिया गया है।
इससे शायद अनावश्यक रूप से पैदा हुआ विवाद समाप्त हो सकता है। एनसीयूआई नेताओं ने मंत्री की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा। संयोग से, सहकार भारती के राष्ट्रीय महासचिव उदय जोशी भी बैठक में मौजूद थे और उन्होंने इस मामले पर मंत्री का मन्तव्य अवश्य जाना होगा।
इससे पहले, नेफकॉब के एक निदेशक उदय जोशी ने कहा कि नेफकॉब सहकारी शिक्षा कोष में उच्चतम योगदानकर्ताओं में से एक है और संस्था ने समय पर एनसीयूआई को दस लाख रुपये का भुगतान किया है। इसके बावजूद भी नेफकॉब का नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं किया गया।
इस खबर पर एनसीयूआई के नेताओं ने नाम न छापने की शर्त पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “कुछ दिन पहले एनसीयूआई को आरटीजीएस के माध्यम से नेफकॉब से 10 लाख रुपये प्राप्त हुए थे लेकिन यह नहीं बताया गया कि पैसे किस काम के लिए दिए गए हैं। फिर संस्था के सीई या चुनाव अधिकारी फंड के हस्तांतरण का उद्देश्य कैसे समझ सकते हैं, खासकर तब जब नेफकॉब ने अतीत में कभी भी एनसीयूआई को इतनी बड़ी राशि का योगदान नहीं किया है”, उन्होंने कहा।
वे इस बात से भी आश्चर्यचकित थे कि नुकसान में होने के बावजूद भी नेफकॉब ने इस फंड का प्रबंध कैसे किया। नेफकॉब के सूत्रों ने कहा कि यह पैसा नेफकॉब द्वारा बनाए गए अधिशेष से दिया गया था और यह कानून के अनुरूप था।
हालांकि, मंत्री के साथ बैठक में विवाद हमेशा के लिए सुलझ गया लगता है। अब एनसीयूआइ की शाषी-परिषद में राष्ट्रीय सहकारी डेयरी फेडरेशन का प्रवेश सुचारू रूप से होगा। इस श्रेणी की अंतिम सूची में इफको के दिलीप सनाघानी, कृभको के डॉ चंद्र पाल सिंह यादव, नेफेड के बिजेन्द्र सिंह और नेशनल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन ऑफ इंडिया के मंगल जीत राय के नाम हैं।