बिहार राज्य सहकारी बैंक के प्रदर्शन से उत्साहित होकर राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सहकारी बैंकों के माध्यम से सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन की इच्छा व्यक्त की।
यह बात सीएम ने हाल ही में बिहार राज्य सहकारी बैंक द्वारा मुख्यमंत्री राहत कोष में एक करोड़ रुपये सौंपने के अवसर पर कही। बैंक अध्यक्ष रमेश चौबे ने कई लोगों की मौजूदगी में यह चेक सीएम को सौंपा।
इस खबर को बिहार के सहकारिता मंत्री सुभाष सिंह ने अपने ट्विटर वॉल पर साझा किया। उन्होंने लिखा, “आज बिहार राज्य सहकारी बैंक ने मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए एक करोड़ रुपये का चेक माननीय मुख्यमंत्री को सौंपा।”
बाद में ‘भारतीयसहकारिता’ से बात करते हुए रमेश चौबे ने कहा, “नेताओं को वास्तविक तस्वीर का तब तक पता नहीं था, जब तक उन्होंने सुना नहीं कि को-ऑप बैंकों ने 88% डीबीटी फंड वितरित करके वाणिज्यिक बैंकों को पछाड़ दिया है। यह सुनकर वह काफी आश्चर्यचकित हुए”, उन्होंने कहा।
चौबे ने सीएम के साथ अन्य सहकारी बैंकों के प्रदर्शन को भी साझा किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि वाणिज्यिक बैंक एक विशेष राज्य तक ही सीमित नहीं हैं और उनमें से कई अक्सर दूसरे राज्यों में अपने कार्यालयों में धन हस्तांतरित करते हैं, जबकि को-ऑप बैंक केवल राज्यों के भीतर ही व्यापार करता है।
“सीएम इस बात से भी खुश हुए कि हमारे बैंक ने वित्तीय वर्ष में 62 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित किया है। ऋण, अग्रिम, सीआरआर आदि, सभी मानकों पर स्टेट को-ऑप बैंक ने उल्लेखनीय रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है, चौबे ने बताया, जो नैफ़्सकॉब के उपाध्यक्ष भी हैं।
पाठकों को याद होगा कि बिहार में अभी भी त्रिस्तरीय प्रणाली है और राज्य में करीब 22 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक हैं। हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री एन. सीतारमन ने संसद में कहा था कि ज्यादातर जिला सहकारी बैंक काफी अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन किसानों को कृषि ऋण देने में अभी थोड़ा पीछे हैं।
वित्त मंत्री ने संसद में कहा कि बिहार के को-ऑप बैंकों ने 2019-20 के दौरान राज्य में केवल 1.12% कृषि ऋण का वितरण किया है जो कि राष्ट्रीय औसत 15% से कम है।
वित्त मंत्री ने कहा कि बिहार में भूमि का औसत आकार 0.39 हेक्टेयर है, जबकि राष्ट्रीय औसत 1.08 हेक्टेयर है। राज्य में कृषि-जोत भूमि का 91% सीमांत किसानों के पास है।