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आईबीसी बदलाव को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया; मराठे ने दिया धन्यवाद

आरबीआई केंद्रीय बोर्ड के सदस्य और वरिष्ठ सहकारी नेता सतीश मराठे ने बैंकों को दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के तहत ऋण वसूली के लिए व्यक्तिगत कॉपोर्रेट गारंटरों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की है, जिसमें कोर्ट ने इस संबंध में जारी अधिसूचना की वैधता को बरकरार रखा है।

इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए मराठे ने कहा कि यह फैसला लेनदारों से बकाये की वसूली के मामले में काफी मददगार साबित होगा।

अपनी फ़ेसबुक वॉल पर मराठे ने लिखा, “सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया।”।  उन्होंने कहा कि इस फैसले से न केवल बैंकों पर बल्कि समग्र भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य पर भी दूरगामी और सकारात्मक परिणाम होंगे।

पाठकों को याद होगा कि दिसंबर 2019 में सरकार एक नया प्रावधान लेकर आई थी, जिसने उधारदाताओं को कॉपोर्रेट देनदारों के व्यक्तिगत गारंटरों के खिलाफ दिवाला-प्रक्रिया शुरू करने के लिए आवेदन करने का अधिकार दिया। सरल शब्दों में कहें तो इस कानून ने बैंकों की गारंटी देने वाली कंपनियों और व्यक्तियों के खिलाफ समानांतर दिवालिया होने की अनुमति दी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी सरकार द्वारा तैयार किया गया आईबीसी कोड आंशिक रूप से सरकार की 2019 की अधिसूचना के माध्यम से बैंकों को दिए गए प्रावधान के अभाव में एक गैर-शुरुआतकारक था।

मराठे ने कहा कि यह उम्मीद की जा सकती है कि ऋणदाता अपनी ऋण वसूली अधिक सही ढंग से कर सकेंगे।  फैसले का सीधा असर रिलायंस पावर के अनिल अंबानी, वीडियोकॉन के वेणुगोपाल धूत, अतुल पुंज समेत अन्य पर पड़ेगा।

बता दें कि अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाएं पिछले वर्ष अक्टूबर में हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की गई थीं।  सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला इस वर्ष मार्च में सुरक्षित रखा था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने अब दिवालिया कंपनियों के मालिकों और उनके गारंटर बनने वालों को जबरदस्त झटका दिया है।

दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2015 को लोकसभा में दिसंबर 2015 में पेश किया गया था। इसे 5 मई 2016 को लोकसभा और 11 मई 2016 को राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था। इस संहिता को 28 मई 2016 को भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई थी।

दिवालियेपन संहिता दिवालियेपन को हल करने के लिए एकल समाधान है जो पहले एक लंबी प्रक्रिया थी और आर्थिक रूप से व्यवहार्य व्यवस्था की पेशकश नहीं करती थी। कोड का उद्देश्य छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा करना और व्यवसाय करने की प्रक्रिया को कम बोझिल बनाना है।

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