केंद्रीय मंत्रिमंडल ने डीआईसीजीसी अधिनियम में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत संकटग्रस्त बैंक पर लेनदेन की पाबंदी लागने की स्थिति में उसके जमाकर्ताओं को एक समय-सीमा के अंदर पांच लाख रुपए तक की राशि का भुगतान हो सकेगा।
अधिनियम में संशोधन लागू होने पर बैंक पर लेन-देन की रोक लगने की स्थिति में जमाकर्ताओं को 90 दिन के भीतर पांच लाख रुपये तक की जमा राशि प्राप्त करने का अवसर सुनिश्चित होगा।
इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए, आरबीआई सेंट्रल बोर्ड के सदस्य सतीश मराठे ने कहा, “इस फैसले से उन बैंकों के जमाकर्ताओं को राहत मिलेगी जिन्हें अपनी गाढ़ी कमाई वापस पाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। मराठे ने ऐतिहासिक निर्णय के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का धन्यवाद किया।”
मराठे ने कहा कि उन सभी शहरी सहकारी बैंकों जैसे पेन अर्बन सहकारी बैंक, रुपी सहकारी बैंक, गुरु राघवेंद्र सहकारी बैंक आदि, जो कई वर्षों से भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देश के अधीन हैं, के जमाकर्ताओं को बड़ी राहत मिलेगी।
“करीब 7 वर्षों से महाराष्ट्र स्थित ‘पेन अर्बन सहकारी बैंक’ के परिसमापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है, जिसके बाद बैंक के जमाकर्ता डीआईसीजीसी अधिनियम के तहत अपना पैसा वापस पाने के हकदार थे। अधिनियम में नए परिकल्पित संशोधनों से जमाकर्ताओं को तुरंत उनका पैसा वापस मिलेगा।
पुणे स्थित ‘रुपी सहकारी बैंक’ के जमाकर्ताओं को भी इस संशोधन से लाभ मिलने की संभावना है। पिछले 9 वर्षों से बैंक भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों के अधीन है और कई बार संकटग्रस्त रुपी बैंक का विलय अन्य बैंक में कराने की कोशिश की गई लेकिन अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है।
वित्त मंत्री के बयान के अनुसार, इस संशोधन से संकटग्रस्त बैंकों के लगभग 98.3 प्रतिशत जमाकर्ताओं को लाभ मिलेगा।
सतीश मराठे ने इस संवाददाता से बात करते हुए कहा कि बैंकों के लिए अतिरिक्त सावधानी बरतने का समय आ गया है क्योंकि नया संशोधन उनके लिए “मजबूत जोखिम प्रबंधन वास्तुकला, आंतरिक प्रणाली और नियंत्रण, पर्याप्त रूप से पूंजीकृत बनाने, और अनुपालन की संस्कृति में सुधार” पेश करने के लिए उम्मीद की किरण है।
मराठे ने महसूस किया कि यूसीबी को अपनी निगरानी प्रणाली को मजबूत करके अतिरिक्त सतर्क रहने की जरूरत है- चाहे वह ऑडिट हो या साइबर सुरक्षा, क्योंकि बैंक में कोई भी बड़ा संकट इसके बंद होने का कारण बन सकता है।
मराठे ने कॉसमॉस बैंक के संदर्भ में बात की और कहा कि अतीत में साइबर हमले के कारण बैंक को करीब 100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था, लेकिन मजबूत रिजर्व होने के कारण वह झटका झेल सका।
उन्होंने कहा कि जोखिम प्रबंधन भी अब पहले की तुलना में अधिक महत्व रखता है। सारस्वत बैंक और कुछ अन्य बैंकों को छोड़कर, अधिकांश यूसीबी अभी भी इस काम में पिछड़ रहे हैं। उन्होंने महसूस किया कि आरबीआई ने एक दशक से अधिक समय पहले से जोखिम प्रबंधन की शुरुआत की है और शहरी सहकारी बैंकों को भी इस विषय पर तत्काल ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
डीआइसीजीसी अधिनियम में संशोधन के मानसून सत्र में पारित होने की संभावना है।