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नाबार्ड के टीडीएफ प्रोजेक्ट्स से राजस्थान में 52,000 आदिवासी परिवारों को लाभ

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने भारत में ग्रामीण क्षेत्रों के रूपांतरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अपने प्रमुख कार्यक्रम जनजातीय विकास निधि (टीडीएफ) के माध्यम से नाबार्ड राजस्थान के आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए निरंतर प्रयासरत है।

संधारणीय कृषि (सस्टेनेबल एग्रीकल्चर), आजीविका के विभिन्न साधनों की उपलब्धता और कौशल विकास को बढ़ावा देकर नाबार्ड ने राजस्थान के हजारों आदिवासी परिवारों के जीवन में उल्लेखनीय सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन लाए हैं।

वर्ष 2005-06 से जनजातीय विकास निधि (टीडीएफ) के तहत नाबार्ड ने राजस्थान में आदिवासी समुदायों के लिए सतत और सहभागी आजीविका के अवसर सृजित करने की दिशा में कदम बढ़ाया। इन परियोजनाओं का उद्देश्य न केवल उद्यान आधारित कृषि प्रणालियों को बढ़ावा देना है, बल्कि स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता, महिला सशक्तिकरण और कौशल विकास को भी एकीकृत करना है।

इन कार्यक्रमों के तहत कौशल विकास, स्वास्थ्य, स्वच्छता, और महिला सशक्तीकरण पर विशेष ध्यान देते हुए समग्र सामुदायिक प्रगति सुनिश्चित की गई। 30 नवंबर, 2024 तक, राज्य में कुल 64 परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं, जिनके लिए 200.90 करोड़ रुपये की संचयी निधि आवंटित की गई. इनमें से 156.11 करोड़ रुपये का संवितरण किया जा चुका है।

इन प्रयासों का लाभ उदयपुर, बांसवाड़ा, बारां, पाली, चित्तौड़गढ़, कोटा, और झालावाड़ सहित 15 जिलों में 51,885 से अधिक आदिवासी परिवारों को हुआ है। स्वीकृत परियोजनाओं में से 56 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, जबकि 8 परियोजनाएं अभी चल रही हैं।

इन परियोजनाओं के अंतर्गत मुख्यतः अंतर-फसलन के साथ-साथ आम, अमरूद, नींबू, और आंवला के छोटे बगीचों (वाड़ी) की स्थापना कर, सागौन, सहजन, और करौंदा आदि का सीमावर्ती वृक्षारोपण किया जाता है। साथ ही, 2,500 भूमिहीन परिवारों को वैकल्पिक आजीविका जैसे बकरी पालन, पशुपालन, मुर्गी पालन, और छोटे स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण एवं किराने की दुकानों जैसे कृषीतर कार्यों के माध्यम से समर्थन प्रदान किया गया है।

नाबार्ड के इस कार्यक्रम की सफलता का एक उदाहरण बारां जिले के केलवाड़ा क्लस्टर की आदिवासी महिला सिया बाई सहरिया हैं।

नाबार्ड और परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी – डेवलपमेंट सपोर्ट सेंटर के सहयोग से, सिया बाई ने एक बगीचा विकसित किया और जलवायु-अनुकूल कृषि प्रथाओं अर्थात जलवायु परिवर्तन प्रतिरोधी कृषि प्रथाओं को अपनाया. इसके परिणामस्वरूप फल और सब्जियां बेचकर उनकी सालाना 95,000 रुपये की अतिरिक्त आय हुई, किराना दुकान से 35,000 रुपये, और जलवायु-अनुकूल कृषि से 95,000 रुपये की कमाई के साथ उनकी वार्षिक आय वर्ष 2018-19 में 45,000 रुपये से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 2,50,000 रुपये हो गई।

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