मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के बीच में सहकारी क्षेत्र में संघर्ष पनप रहा है, मुख्यमंत्री छह जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसी) के बेलआउट के लिए तैयार नही है, ऐसी संभावना है कि बैंक 30 सितंबर तक अपने बैंकिंग लाइसेंस खो देंगे।
इन बैंकों को अपने निगेटिव नेटवर्थ में सुधार करने और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के दिशा निर्देशों के अनुसार बैंकिंग गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए 551 करोड़ रुपये के पैकेज की आवश्यकता है।
यह बैंक राजेश टोपे (जालना डीसीसी) और विजयकुमार गावित (धुले-नंदुरबार डीसीसी) दो मंत्रियों सहित राकांपा नेताओं द्वारा तीन बैंक नियंत्रित होते हैं।
यह पता चला है कि चव्हाण इन बैंकों के बेलआउट के लिए उत्सुक नहीं है, क्योंकि ये बैंक खराब प्रबंधन के कारण गैर-निष्पादित संपत्ति जमा कर रखी है।
राकांपा उन्हें खतरे से बाहर करने के लिए उत्सुक है इन बैंको पर कब्ज़ा की वजह से ही राकांपा को राजनीतिक ताकत हासिल है।
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार और चव्हाण ने इस मुद्दे पर हाल ही में एक बैठक की थी। चव्हाण ने कहा है कि राज्य सरकार इस पैकेज को देने की हालत में नही हैं।
पवार ने कहा मदद के लिए केंद्र खड़ा है, वैद्यनाथन पैकेज से सहकारी बैंकों के लिए 900 करोड़ रुपये का राज्य का हिस्सा है और इसे वितरित नहीं किया गया था, इस राशि का इस्तेमाल किया जा सकता है।
बैठक के बाद पवार ने कहा, वैद्यनाथन पैकेज के हिस्से का उपयोग राज्य में किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कोई बजटीय आवंटन इस साल नही है, इसलिए हम मुख्यमंत्री के साथ वित्त मंत्री पी. चिदंबरम से इस मुद्दे पर मिलेंगे।
“ऐसे संकेत मिले हैं कि कम से कम तीन बैंकों- जालना, उस्मानाबाद, और वर्धा को संकट से उबरने के लिए कुछ हस्तक्षेप के साथ इन बैंकों को 148 करोड़ रुपये की आवश्यकता है”
राकांपा ने तर्क दिया है कि अगर इन बैंकों को बंद किया जाता है तो किसानों को ऋण के स्रोतों से वंचित किया जाएगा। यह देखना होगा कि चव्हाण दबाव के तहत बैंकों के लिए एक वित्तीय सहायता पैकेज देते है या नही।