एनएलसीएफ की वार्षिक सामान्य निकाय की बैठक गुरुवार को नई दिल्ली में सरिता विहार में आयोजित की गई। एनएलसीएफ के अध्यक्ष संजीव कुसालकर की अध्यक्षता में सदस्य संस्थानों से लगभग 72 प्रतिनिधियों ने बैठक में भाग लिया।
एनएलसीएफ में करीब 202 सदस्य सोसायटी शामिल है।
बैठक का मुख्य आकर्षण एनएलसीएफ निदेशक अशोक डबास थे। उनकी मौजूदगी का कुछ सदस्यों ने विरोध किया। एनएलसीएफ के उपाध्यक्ष श्री लिंगायह ने बिना नाम लिए कहा कि कुछ लोग सहकारी महासंघ को अदालत में खींच रहे है, उन्हें अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना होगा। डबास ने तुरंत संकेत को समझकर कहा कि यदि अध्यक्ष उनसे इस विषय पर कोई सवाल पूछना चाहते है तो वह उसका जवाब देने के लिए तैयार है।
भारतीय सहकारिता से बात करते हुए श्री लिंगायह ने कहा है कि बोर्ड, एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष है, लेकिन केन्द्रीय रजिस्ट्रार या अदालत से सीधे बात करना सहकारिता नही है।
एनएलसीएफ प्रबंध निदेशक आर.एन.पांडे और अशोक डबास के बीच पुरानी लड़ाई है। एनसीयुआई में पिछले साल आयोजित एक समारोह में डबास ने एनएलसीएफ का सार्वजनिक उपहास बनाकर अध्यक्ष संजीव कुसालकर का भी अपमान किया था।
नाराज कुसालकर ने डबास की शासी परिषद की सदस्यता को समाप्त करने का अनुरोध एनसीयुआई से पत्र लिखकर किया था। मामला एनसीयुआई की फ़ाइलों में धूल खा रहा है, हालांकि डबास ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और अंततः मामला मध्यस्थता के लिए चला गया।
भारतीय सहकारिता ने पता किया है कि डबास ने एनएलसीएफ अध्यक्ष कुसालकर से पैचअप करने के लिए संपर्क किया था, लेकिन डबास के विरोधी ऐसे किसी कदम का विरोध कर रहे हैं।
गुरुवार को बैठक में एनएलसीएफ अध्यक्ष श्री कुसालकर ने संघ की गतिविधियों, समस्याओं और एनएलसीएफ की भविष्य की योजना पर प्रकाश डाला। सिकुड़ते हुए सरकारी अनुदान के कारण कुसालकर ने एनएलसीएफ के सदस्यों से वार्षिक सदस्यता और शेयर पूंजी के बकाया राशि का भुगतान करने का अनुरोध किया है।
इस अवसर पर सदस्यों ने भी अपने विचारों और सुझाव प्रस्तुत किए। श्री राम शंकर शुक्ला (उत्तर प्रदेश) ने सुझाव दिया है कि एनएलसीएफ को सिविलनिर्माण सहकारी संस्थाओं से काम लेना चाहिए। लखनऊ के श्री मेवा लाल का विचार था कि एनएलसीएफ को गृह व्यवस्था, कचरा संग्रहण और रखरखाव के काम के निष्पादन में शाखाओ की मदद से प्रवेश करना चाहिए।