जीसीएमएमएफ द्वारा महाराष्ट्र के महानंदा दूध सहकारी से रुपये का 22.5 करोड़ की वसूली के लिए बिल भेजने के साथ मवेशी चारा विवाद, जिसके कारण विपुल चौधरी को अपनी नौकरी गंवानी पडी, रोचक बन गया है.
महानंदा दूध सहकारी के लिए यह एक उपहार था लेकिन जीसीएमएमएफ के लिए यह एक व्यापारिक लेनदेन था.
पाठकों को याद होगा कि 2013 में महाराष्ट्र में सूखे के दौरान मेहसाणा में स्थित गुजरात दुग्ध सहकारी दूधसागर द्वारा महाराष्ट्र के महानंदा दूध सहकारी को रुपये 22.5 करोड़ का दान दिया गया था.
मवेशी चरा पूरे महाराष्ट्र में किसानों के बीच वितरित किया गया था. यहां तक कि महाराष्ट्र सरकार ने दान के लिए गुजरात का शुक्रिया अदा करते हुए विभिन्न समाचार पत्रों में विज्ञापन जारी किया था.
विपुल चौधरी दूधसागर की अध्यक्षता करते रहे थे. यह पता चला कि गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) जो दूधसागर को नियंत्रित करता है, की अंतिम सहमति के बिना ही चौधरी कार्य कर रहे थे.
आगामी संसदीय चुनाव के मद्देनजर यह एक गंभीर राजनीतिक और वित्तीय मुद्दा बन गया है क्योंकि जीसीएमएमएफ ने दान के लिए एक बिल भेजा है. धन की एक बड़ी हेराफेरी होने के संदेह में मुद्दे को जांच के लिए पुलिस को भेजा गया है जिससे कि पूरी तरह जांच हो सके – गुजरात सहकारी विभाग के एक अधिकारी का दावा है.
दूधसागर के अधिकारी आरोपों को नकार रहे हैं. उनका दावा है कि केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार और महानंदा डेयरी के एक अपील के जवाब में मवेशी चरा महाराष्ट्र को दिया गया था.
जब भी दूधसागर सहकारी द्वारा स्पष्टीकरण दिया गया है, आरोप इसके पूर्व अध्यक्ष चौधरी और अन्य पदाधिकारियों के खिलाफ लगाया गया है.