शपथ लेने का दिन जैसे-जैसे करीब आ रहा है, Cooperators द्वारा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को बधाइयों का क्रम जारी. इफको के सहकारी विकास निदेशक डॉ. जी.एन. सक्सेना ने भारतीयसहकारिता.कॉम को अपनी शुभकामनाओं की एक प्रति भेजी जिसे उन्होंने पहले ही श्री मोदी को भेज दी है.
डॉ. सक्सेना ने लिखा – भारतीय जनता के दिलों को जीतने के लिए नरेंद्र मोदी जी को हमारी हार्दिक बधाई! सहकारिता ने भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन अभी भी भारतीय अर्थव्यवस्था में सहकारिता को उचित स्थान प्राप्त नहीं है. अतः सहकारी समितियों को अर्थव्यवस्था की तीसरी शाखा के रूप में मान्यता की जरूरत है और बड़ी सहकारी समितियों को भी फिक्की आदि के साथ सक्रिय बातचीत के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए. सहकारी समितियों को निजी क्षेत्रों के समान ही अवसर मिलना चाहिए”.
विदेशी कमाई के मुद्दे पर सहकारी समितियों के साथ सतत सौतेला व्यवहार के बारे में डॉ.सक्सेना ने कहा, “एक निजी क्षेत्र की इकाई अन्य देशों में अपने निवेश पर लाभांश लाता है तो उसे 15% ITax का भुगतान करना पडता है जबकि सहकारी समितियों को 30% का भुगतान करना पडता है.
अतीत में इफको के प्रबंध निदेशक श्री अवस्थी द्वारा इस विसंगति पर आवाज उठाई गई थी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मोदी के आने से सबके मन में आशा पैदा हुई है, अतः यह स्वाभाविक ही है कि सहकारी क्षेत्र भी सुधार की उम्मीद करें, एक पर्यवेक्षक ने टिप्पणी की है.
इससे पहले, देश में सहकारी आंदोलन की कमजोरियों की पर प्रकाश डालते हुए अवस्थी ने मां की थी कि सेबी की तर्ज पर एक सहकारी एक्सचेंज स्थापित किया जाय. निजी क्षेत्र का एक्स्चेंज है, सार्वजनिक क्षेत्र का सरकारी कोष है लेकिन सहकारी क्षेत्र का कुछ नहीं है. यदि एक सहकारी संस्था पूंजी की कमी के संकट से आक्रांत होती है तो उसके पास कोई रास्ता नहीं है, उन्होंने कहा.
नाफेड या MSCB की तरह कुछ हाई प्रोफाइल दिग्गजों सहित कई सहकारी समितियों बीमार हैं लेकिन कोई व्यवहार्य समाधान दृष्टि में नहीं हैं. उनके लिए अल्पकालिक फंड मुहइया कराने और लंबी अवधि के व्यापार की योजना बनाने की जरूरत है. और एक सहकारी सेबी समाधान है, एक विशेषज्ञ ने कहा.